Wednesday, August 29, 2007
आगरा का दंगा या साजिश
प्रशासन की लापरवाही कम पुलिस बल और राजनेताओं का डर सबने मिलकर आगरा का क घंटों तक अराजकता में झोंक कर रख दिया। २९ अगस्त की सुबह अभी हुई भी नहीं थी कि आगरा के सबसे ब्यस्त एमजी रोड पर दो युवकों की ट्क से कुचल कर मौत हो गई। हादसे बचकर भागने के प्रयास में चालक ने पैदल चल रहे दो और लोग कुचल गए। ये सभी लोग शबे बरात में कब्रिस्तान से लौट रहे थे। मरने वाले सभी मुस्लिम थे। इस घटना से लोगों में आक्रोश होना स्वाभाविक था। इसकी सूचना पास के थाने में दी गई लेकिन पुलिस का वही ढीला रवैया रहा। वह समय रहते घटनास्थल पर आई ही नहीं। लोंगों का गुस्सा आसमान पर आ चुका था। तब तक भीड़ में असमाजिक तत्व घुस चुके थे। उन्होंने भीड़ को उकसाना शुरु कर दिया। इसके बाद भीड़ ने सड़क पर वाहनों कों रोक कर आग लगाना शुरु कर दिया। देखते ही देखते एक दर्जन से ज्यादा ट्रकों और दूसरे वाहनों को फूंक दिया गया। पुलिस इतनी कम संख्या में थी कि वह भीड़ का काबू पाने में असफल साबित हो रही थी। भीड़ का अगला निशाना घटना स्थल पर मौजूद पुलिस वाले बने। पुलिस कर्मी थाना छोड़कर भाग गए। भीड़ का अब तक सारा गुस्सा पुलिस और प्रशासन के खिलाफ था। पुलिस उपद्रवियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रही थी। क्योंकि मरने वाले एक विधायक के रिश्तेदार थे। न तो तब तब पुलिस ने लाठीचार्ज किया और न कोई दूसरा तरीका ही भीड़ को हटाने के लिए किया। विधायक का प्रशासन पर दबाव था कि भीड़ के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाया जाय। पथराव से बचने को पुलिस सड़क के दूसरी ओर चली गई। इधर पुलिस की हालत यह थी कि उसके आंसू गैस के गोले और बंदूके बेकार साबित हो रही थी। अब तक मुस्लिम मोहल्ले से फायरिंग होने लगी। पुलिस को अपने बचाव का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा था। भीड़ के गुस्से से बचने के लिए पुलिस ने सांप्रदायिकता का कार्ड खेला। पुलिस के उकसावे पर ही हिंदू मोहल्ले के लोग उसके साथ एकजुट हो गए। अब यहां के लंपट तत्वों ने पथराव करना शुरु कर दिया। इन तत्वों को पुलिस का पूरा संरक्षण था। देखते ही देखते हादसा सांप्रदायिक रुप लेने लगा। धर्म स्थलों के अलावा व्यापारिक प्रतिष्टानों को भी निशाना बनाया जाने लगा।लगभग तीन घंटे तक शहर आग में झुलसता रहा। इसके बाद ही प्रशासन सक्रिय हुआ। प्रशासन ने कर्फ्यू की घोषणा का कोई असर नहीं हुआ। भीड़ सड़कों पर ही रही पुलिस के लाठीचार्ज और गोली चलाने के बाद भीड़ हट सकी। इसके बाद शहर में शांति है। सबसे आश्खर्य इस बात का है कि किसी भी राजनीतिक दल का नेता लोगों को समझाने नहीं आया। अलबत्ता शांति होने के बाद अब मेढ़क बाहर आकर टर्रा रहे हैं। एक सड़क हादसे को नेता और प्रशासन कैसे सांप्रदायिक हो जाता है यह आगरा में २९ अगस्त को देखा।
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1 comment:
अत्यंत दुखदायी घटना/
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