Monday, August 27, 2007

संजय के बाद सलमान

कुछ लोग कह रहे है कि बालीबुड के आजकल बुरे दिन चल रहे हैं। इसके सितारौं के सितारे गर्दिश में हैं। वास्तव में ऐसा है क्या। शायद पहली बार इस देश की अदालतों ने पैसे वालों के खिलाफ फैसला दिया है। अब तक का इतिहास तो यह ही रहा हे कि कानून को पैसे वालों ने खरीद ही लिया। बालीबुड में काम करने वाले अभिनेता तो खुद को किसी भगवान से कम नहीं समझते हैं। वे यह मानकर चलते है कि लोग हमारे दीवाने है तो हमें कुछ भी करने का अधिकार है। कानून तो उन लोगों के लिए है जो सड़क पर रहते है। बालीबुड में केवल संजय या सलमान ही नहीं है जिन्होंने कानून के साथ खिलबाड़ किया है। सलमान को सजा होने पर सबसे ज्यादा इस बार भी हमारा मीडिया ही रो रहा हे। उसका रोना तो अब खलता भी नहीं है क्यों कि उसका सारा खेल टीआरपी के लिए हे। इसलिए उसे कुछ भी करने का अधिकार दे दिया गया है। चाहे अपराध हो या भूत प्रेत सब कुछ जायज है। दुख तो हमारे सांसदों के बयानों को लेकर हो रहा है। सलमान की सजा पर कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला कहते है एक चिंकारा को मारने की सजा पांच साल कोई तुक नहीं है। उनका तो यह भी कहना है कि जेल की सजा के बदले पैसे ले लो करोड़ या दो करोड़। इसका क्या मतलब है कि अपराध करो और पैसा देकर छूट जाओ। कोई इन सांसद महोदय से पूछे कि अगर कोई गरीब चिंकारा की हत्या करता और उसके पास करोड़ रुपये न हो तो वह जेल जाएगा लेकिन सलमान को मत भेजो क्योंकि उसके पास करोडों रुपये हैं। सीधा सा बोलिए फारुक साहब कि आप पैसेवालों को सजा देने के खिलाफ हैं। संसद में क्या आप सिर्फ पैसे वालों के प्रतिनिधि है या आम आदमी के। इतना ही नहीं वे कहते हैं कि पैसा लेकर तुम जानवरों की रक्षा कर सकते हो। क्यों करें जानवरों की रक्षा ताकि कोई सलमान फिर आए और चिंकारा की हत्या कर दे। चिंकारा केचल एक जानवर नहीं हमारे इकोलाजी का हिस्सा है। उसके न होने का असर पूरी व्यवस्था पर पड़ेगा तब आप पैसे देकर कायनात को नहीं बचा सकेंगे फारुक साहब। यह हमारे सांसदों की धनपतियों के आगे नतमस्तक होने का सबूत है। इन साहब की इसी मानसिकता का परिणाम है कि आज कश्मीर बर्बाद हो गया है। वहां भी ये साहब अमीरों के साथ उनके गलत सही कामों के साथ रहे और प्रदेश जलता रहा। आप तो साहब इस देश की सर्वोच्च कानून बनाने वाली संस्था में बैठे हैं बना क्यों नहीं देते कानून कि करोड़पति को कानून तोड़ने पर जेल नहीं भेजा जाएगा केवल पैसा लिया जाएगा। जेल केवल वह आदमी जाएगा जो पैसा नहीं दे सकता है यानी गरीब। एक आर सांसद है दारा सिंह पहले निर्दलीय थे अब भाजपा के हैं। वे भी कह रहे है कि एक जानवर को मारने की सजा पांच साल गलत है। भारत में रोज कितने ही जानवर मर रहे हैं। उनको भी नहीं मालूम कि चिंकारा क्या है और उसका स्थानीय लोगों से क्या संबंध है उनको स्थानीय निवासियों की भावनाऒं की कोई चिंता नहीं। यह बात सही है कि यदि बिश्नोई समाज इतनी शिद्दत से यह मामला नहीं लड़ता तो सलमान को कभी सजा नहीं होती। इससे एक बात भी जाहिर होती है कि पर्यावरण की रक्षा केवल स्थानीय निवासी ही कर सकते है। सरकारी मशीनरी तो किसी को क्या सजा दे पाएगी क्यों कि दारा सिंह और फारुक अब्दुल्ला जैसे सांसदों के दबाच कुछ करने भी देगा। जब सांसदों की यह हालत है तो दूसरों के बारे में क्या कहा जाय।

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

मैं तो कहता हूँ कि चिंकारा क्या, आदमी की हत्या करने पर भी हत्यारे को कुछ ले देकर छोड़ देना चाहिये। सबको पता है कि भारत में सबसे सस्ता है तो आदमी और उसकी जान। जिधर देखो उधर आदमी ही आदमी हैं। जिस समस्या पर विचार करने बैठो, अन्त में आदमी की जनसंख्या पर आकर बात अटक जाती है।

इसी तरह बलात्कार आदि के लिये भी दण्द का प्राविधान रखना तर्कसंगत नहीं है। इस देश में कितना कुछ बलात् हो रहा है - कुछ पर्दे के भीतर तो कुछ सरे आम!

बसंत आर्य said...

लेख तो अच्छा है परंतु भाई अनुनाद सिन्ह की टिप्पणी बहुत सही है.

Udan Tashtari said...

तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.


--वाह अनुनाद!!!