Friday, December 5, 2008

भारतीय बच्चों के दो चेहरे


यह फोटो हिन्दुस्तान की फोटोग्राफ सर्वेश ने आतंकबाद के खिलाफ बच्चों की रैली के अवसर पर खींची थी। इसमें भारत और इंडिया के बच्चों की पहचान साफ दिखाई देती है।

Wednesday, November 12, 2008

इनका क्या कसूर





पिछले तीन दो दिन में देहरादून के आसपास जंगली जानवर मारे गए
फोटो नंबर एक में मसूरी के पास जंगल में मरी पड़ी यह जंगली बिल्ली है। वन विभाग पहले तो वन विभाग को पता ही नहीं चला कि यह जानवर क्या है। बाद में इसका बिसरा सुरक्षा वन्य जीव संस्थान भिजवा दिया। इस बेचारे की मौत किसी वाहन से टकरा कर हुई है।
फोटो नंबर दो में चलते वाहन से टकरा कर राजाजी पार्क से निकला सांभर मारा गया और सड़क के किनारे पड़ा है।
फोटो तीन में गुलदार का शव लेकर वन कर्मचारी ले जा रहे हैं। इसकी मौत देहरादून से पांच किमी दूर राजपुर के पास हुई है। इसकी मौत का पता तो पोस्टमार्टम के बाद भी नहीं चल पाया। अलबत्ता वन विभाग ने आनन फानन मे इसके शव को जला दिया। वैसे इस इलाके में ग्रामीण अपनी फसलों को जंगली सुअरों से बचाने के लिए रस्सी या तार के फंदे लगाते है। शायद यह गुलदार भी इन्हीं फंदे में फंस गया हो। अब विभाग जांच करवा रहा है।

Tuesday, November 11, 2008

मंत्रियों को बुद्धजीवी दिखने का जुनून

आजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।

मंत्रियों को बुद्धजीवि दिखने का जुनून

आजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।

Tuesday, February 12, 2008

मूल्‍यविहीनता की पराकाष्‍ठा

संजय दत्‍त ने मान्‍यता से शादी कर ली, से‍लिबिटी की शादी मे उत्‍सुकता होना स्‍वाभिवक है लेकिन जिस तरह से मीडिया इस शादी के पीछे पागल हुआ वह तो आश्‍चर्यजनक हैा इससे पहले अभिषेक बच्‍चन और एश्‍वर्य की शादी में भी मीडिया ने ऐसा ही कुछ किया थाा इन दो मौकों पर ऐसा लगता था मानों यही देश का सबसे बडा कार्यक्रम है और इसको कबर न किया जाए तो सारा मीडिया का सामान्‍य ज्ञान तुच्‍छ माना जाएगा हो सकता है कि आपके ज्ञान पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लग जाएा टीआरपी गिर जाएगी, अखबार का पहला पेज चमकीला नहीं हो पाएगा तो पाठक नाराज कि आखिर क्‍या छाप दिया संजय दत्‍त गायब
आम आदमी से यही अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह समाज के बेहतर मूल्‍य व्‍यवस्‍था के बारे में गइराई से सोचे लेकिन मीडिया को क्‍या हुआा संजय दत्‍त आखिर कैसी सेलिबेटी है, जिसे निचली अदालत ने सजा सुनाई है और जो तमाम कानूनी दांवपेचों का सहारा लेकर ऊपरी अदालत से जमानत पर रिहा हैा सजा भी कैसी मुबई बम ब्‍लास्‍ट के साथा अवैध हथियार रखने कीा इस कमजोर सजा पर भी एक विचार मौजूद है कि प्रभावशाली होने के कारण उस पर पोटा नहीं लगाया गयाा यहां तक कि सीबीआई ने भी अदालत में इस मुददे पर जिरह करने की जरूरत नहीं समझी कि पोटा को भी लागू किया जाना चाहिएा
क्‍या यही हमारे मीडिया के मूल्‍य होंगे कि एक सजायाफ़ता को नायक की तरह पेश किया जाएा अगर संजय दत्‍त निदोर्ष हे और सेलिबेटी बनने लायक है तो ि‍फर अन्‍य आरोपियों को क्‍यों दोषी बताया जाए वे सेलिबेटी बनने लायक न हो लेकिन संजय दत्‍त की तरह के सम्‍मानजनक व्‍यवहार के लायक तो ही सकते हैा संजय दत्‍त को सेलिबेटी बनाने वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वे अन्‍य लोगों के कामों को गलत बताएंा अगर मुबंई बम व्‍लास्‍ट के समय संजय सरकारी एजेंसियों को सही समय पर सूचना देते कि इस तरह के हथियार आ रहे है तो शायद सरकारी एजेसियों को बुछ सुराग मिलते और स्थितियां दूसरी भी हो सकती थी
आज के मीडिया की सबसे बडी कमजोरी यह हो गई है कि उसका चरित्र वर्गीय हो गया है उसका प्रकाशन एक वर्ग को ध्‍यान में रख कर किया जाने लगा है वह जिसके पास खरीदने की ताकत है और जो अखबार में छपे विज्ञापनों की सामग्री को खरीद सके आम आदमी तो हाशिए पर हैा इसलिए संजय दत्‍त के सेलेबिटी बनाने में उसे कोई दुख नहींा यह वर्ग सोचने लगा है कि समाज में व्‍याप्‍त मूल्‍यविहीनता से उसे कोई फर्क नहीं पडने वाला इसलिए मूल्‍यों की चिंता करने वाले बुडभसों को रहने दोा मीडिया के नीतिनिर्धारकों के पास एकपल ठहरकर सोचने का वक्‍त नहीं है कि कहीं तो इस फिसलन पर रोक लगें मूल्‍यविहीनता कहीं न कहीं समाज में अराजकता को जन्‍म देगी और इसका पहजा शिकार मीडिया ही बनेगाा शायद एसी कमरों में बैठे न भी हो तो मैदान में दौड रहे उस मूल्‍य विहीनता की तपिश झेलेंगे

Monday, January 7, 2008

why shake hand


congratulation
we won the match

कहीं तो शर्म करे बीसीसीआइ

सिडनी का टेस्ट अंपायरों के कारण हार गए तो बीसीसीआइ सिर्फ चीखता रह गया। पहले दिन से हो रही बेइमानी पर उसको समझ तब आइ जब मैच हार गए। हद तो तब हो गइ जब हरभजन सिंह पर नस्लभेदी टिप्पणी के आरोप मे तीन मैंचों का प्रतिबंध लगा दिया। रंगभेद के खिलाफ भारत का संघर्ष पूरे विश्व को पता है। इस पर अगर बीसीसीआइ इसे स्वीकार कर लेता है तो यह भारत के अब तक के रंगभेद के खिलाफ संघर्ष की हार है। बीसीसीऒइ ने इसका प्रतिरोध जितना कमजोर तरीके से किया है वह चिंतनीय है। यह एक खिलाडी का अपमान नहीं वरन पूरे देश की विचारधारा का अपमान है। रंगभेदी भारतीय खिलाडी नहीं वरन आस्टेलिया ऒर आइसीसी है। वास्तविकता तो यह है कि साइमंडस के तोर पर आस्टेलिया के पास कार्ड हे जिसका उपयोग वह किसी के खिलाफ भी रंगभेदी टिप्पणी करने के लिए लगा देता है। सही बात तो यह है कि आस्ट्रेलिया के खिलाडी उज्जड है। भारत के अपने दौरे में ट्राफी लेते समय उन्होंने शरद पवार को जिस तरह से धक्का दिया वह भी बीसीसीआइ को याद नहीं। उसके बाद भी शरद पवार की बीसीसीआइ गोरी चमडी के आगे नतमस्तक क्यों है। इनके लिए पैसा कमाना इतना महत्वपूर्ण हो गय कि कोइ इनको कितना ही अपमानित करे इन्हें फर्क नहीं पडता। इन्हे अपमानित होने का शौक हो सकता है मेहरबानी कर देश को अपमानित न करें।