tag:blogger.com,1999:blog-81356380459090625872024-03-05T15:39:36.640-08:00शूद्रकआगे-आगे देखिए होता है क्या...!प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.comBlogger40125tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-29074830097304229462008-12-05T07:19:00.000-08:002008-12-05T07:20:21.790-08:00भारतीय बच्चों के दो चेहरे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVDxgomTBEmu8ZLnlYsMY2zByZ-H1p0_EcYbqJmc57uqMHu55edGRETxjTABusL35Q2s1Temi5BS8uDuTz1ncRdkAOIFkj9iurtPOdqOef-HaHxKDe7aNeo4xML7NZke3vVyF2i2t7Bf03/s1600-h/3dec+sarvesh.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5276325988018375554" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 215px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVDxgomTBEmu8ZLnlYsMY2zByZ-H1p0_EcYbqJmc57uqMHu55edGRETxjTABusL35Q2s1Temi5BS8uDuTz1ncRdkAOIFkj9iurtPOdqOef-HaHxKDe7aNeo4xML7NZke3vVyF2i2t7Bf03/s320/3dec+sarvesh.jpg" border="0" /></a><br /><div>यह फोटो हिन्दुस्तान की फोटोग्राफ सर्वेश ने आतंकबाद के खिलाफ बच्चों की रैली के अवसर पर खींची थी। इसमें भारत और इंडिया के बच्चों की पहचान साफ दिखाई देती है। </div>प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-67259815215746505492008-11-12T09:56:00.000-08:002008-11-12T10:18:35.357-08:00इनका क्या कसूर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzNaCxdlbC92zDQ_OVd0WQ964maNIdiIaBNIkRv7GvKeblQLjDoWzASTgjDDLBf7-hf1P5aYQImaHhF8vJlFQ5rVcqEOSuIHgp0-28ICCWRQPAPhUKhVXWScdxUnawzgcDxGPk1leDFdZ3/s1600-h/muss.p5.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5267832504769603346" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzNaCxdlbC92zDQ_OVd0WQ964maNIdiIaBNIkRv7GvKeblQLjDoWzASTgjDDLBf7-hf1P5aYQImaHhF8vJlFQ5rVcqEOSuIHgp0-28ICCWRQPAPhUKhVXWScdxUnawzgcDxGPk1leDFdZ3/s320/muss.p5.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKTU6TV1NVNcSfRyE_5Kmdvs4Il_bjQ3sI9zQb-NfpzugeLm2-hYTXQW65j_iKAQf_-GQ1uUi3oNi94HONotzzeiWNEZx3ux_EppxWMGFmSvESsad-nT6ChLLi_ipTew8auTWa77Pwhsgf/s1600-h/12rsk15.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5267832412831051330" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKTU6TV1NVNcSfRyE_5Kmdvs4Il_bjQ3sI9zQb-NfpzugeLm2-hYTXQW65j_iKAQf_-GQ1uUi3oNi94HONotzzeiWNEZx3ux_EppxWMGFmSvESsad-nT6ChLLi_ipTew8auTWa77Pwhsgf/s320/12rsk15.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI1thfH4-YXQefYJXlZusD5hUGIz9Sinq5SvSGO5WhLY8key35tGXcaTvxLLLYg-iZow2XsYAIbsWDf8vI_ZxUMa3xdGgWPJpgA9AE3u9JwIQQcpmtnrjpPt1BPuFt2LL7YFWaahdVRwQk/s1600-h/11+11+DDN.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5267832278023268114" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 224px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI1thfH4-YXQefYJXlZusD5hUGIz9Sinq5SvSGO5WhLY8key35tGXcaTvxLLLYg-iZow2XsYAIbsWDf8vI_ZxUMa3xdGgWPJpgA9AE3u9JwIQQcpmtnrjpPt1BPuFt2LL7YFWaahdVRwQk/s320/11+11+DDN.jpg" border="0" /></a><br />पिछले तीन दो दिन में देहरादून के आसपास जंगली जानवर मारे गए </div><div><span class=""> फोटो </span>नंबर एक में मसूरी के पास जंगल में मरी पड़ी यह जंगली बिल्ली है। वन विभाग पहले तो वन विभाग को पता ही नहीं चला कि यह जानवर क्या है। बाद में इसका बिसरा सुरक्षा वन्य जीव संस्थान भिजवा दिया। इस बेचारे की मौत किसी वाहन से टकरा कर हुई है। </div><div>फोटो नंबर दो में चलते वाहन से टकरा कर राजाजी पार्क से निकला सांभर मारा गया और सड़क के किनारे पड़ा है।</div><div>फोटो तीन में गुलदार का शव लेकर वन कर्मचारी ले जा रहे हैं। इसकी मौत देहरादून से पांच किमी दूर राजपुर के पास हुई है। इसकी मौत का पता तो पोस्टमार्टम के बाद भी नहीं चल पाया। अलबत्ता वन विभाग ने आनन फानन मे इसके शव को जला दिया। वैसे इस इलाके में ग्रामीण अपनी फसलों को जंगली सुअरों से बचाने के लिए रस्सी या तार के फंदे लगाते है। शायद यह गुलदार भी इन्हीं फंदे में फंस गया हो। अब विभाग जांच करवा रहा है।<br /><br /></div><div></div></div>प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-78113492567834866742008-11-11T10:34:00.000-08:002008-11-11T10:36:30.047-08:00मंत्रियों को बुद्धजीवी दिखने का जुनूनआजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-4446743819941371172008-11-11T05:19:00.000-08:002008-11-11T10:25:58.248-08:00मंत्रियों को बुद्धजीवि दिखने का जुनूनआजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-89988382656279361542008-02-12T00:41:00.001-08:002008-02-12T00:41:41.845-08:00मूल्यविहीनता की पराकाष्ठासंजय दत्त ने मान्यता से शादी कर ली, सेलिबिटी की शादी मे उत्सुकता होना स्वाभिवक है लेकिन जिस तरह से मीडिया इस शादी के पीछे पागल हुआ वह तो आश्चर्यजनक हैा इससे पहले अभिषेक बच्चन और एश्वर्य की शादी में भी मीडिया ने ऐसा ही कुछ किया थाा इन दो मौकों पर ऐसा लगता था मानों यही देश का सबसे बडा कार्यक्रम है और इसको कबर न किया जाए तो सारा मीडिया का सामान्य ज्ञान तुच्छ माना जाएगा हो सकता है कि आपके ज्ञान पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएा टीआरपी गिर जाएगी, अखबार का पहला पेज चमकीला नहीं हो पाएगा तो पाठक नाराज कि आखिर क्या छाप दिया संजय दत्त गायब<br />आम आदमी से यही अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह समाज के बेहतर मूल्य व्यवस्था के बारे में गइराई से सोचे लेकिन मीडिया को क्या हुआा संजय दत्त आखिर कैसी सेलिबेटी है, जिसे निचली अदालत ने सजा सुनाई है और जो तमाम कानूनी दांवपेचों का सहारा लेकर ऊपरी अदालत से जमानत पर रिहा हैा सजा भी कैसी मुबई बम ब्लास्ट के साथा अवैध हथियार रखने कीा इस कमजोर सजा पर भी एक विचार मौजूद है कि प्रभावशाली होने के कारण उस पर पोटा नहीं लगाया गयाा यहां तक कि सीबीआई ने भी अदालत में इस मुददे पर जिरह करने की जरूरत नहीं समझी कि पोटा को भी लागू किया जाना चाहिएा<br />क्या यही हमारे मीडिया के मूल्य होंगे कि एक सजायाफ़ता को नायक की तरह पेश किया जाएा अगर संजय दत्त निदोर्ष हे और सेलिबेटी बनने लायक है तो िफर अन्य आरोपियों को क्यों दोषी बताया जाए वे सेलिबेटी बनने लायक न हो लेकिन संजय दत्त की तरह के सम्मानजनक व्यवहार के लायक तो ही सकते हैा संजय दत्त को सेलिबेटी बनाने वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वे अन्य लोगों के कामों को गलत बताएंा अगर मुबंई बम व्लास्ट के समय संजय सरकारी एजेंसियों को सही समय पर सूचना देते कि इस तरह के हथियार आ रहे है तो शायद सरकारी एजेसियों को बुछ सुराग मिलते और स्थितियां दूसरी भी हो सकती थी<br />आज के मीडिया की सबसे बडी कमजोरी यह हो गई है कि उसका चरित्र वर्गीय हो गया है उसका प्रकाशन एक वर्ग को ध्यान में रख कर किया जाने लगा है वह जिसके पास खरीदने की ताकत है और जो अखबार में छपे विज्ञापनों की सामग्री को खरीद सके आम आदमी तो हाशिए पर हैा इसलिए संजय दत्त के सेलेबिटी बनाने में उसे कोई दुख नहींा यह वर्ग सोचने लगा है कि समाज में व्याप्त मूल्यविहीनता से उसे कोई फर्क नहीं पडने वाला इसलिए मूल्यों की चिंता करने वाले बुडभसों को रहने दोा मीडिया के नीतिनिर्धारकों के पास एकपल ठहरकर सोचने का वक्त नहीं है कि कहीं तो इस फिसलन पर रोक लगें मूल्यविहीनता कहीं न कहीं समाज में अराजकता को जन्म देगी और इसका पहजा शिकार मीडिया ही बनेगाा शायद एसी कमरों में बैठे न भी हो तो मैदान में दौड रहे उस मूल्य विहीनता की तपिश झेलेंगेप्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-61995842663675856412008-01-07T05:47:00.000-08:002008-01-07T07:41:22.183-08:00why shake hand<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpPrZDY7nPyGoJOGorcpx1bUEYaQCQQKbR1SDDrTxEUFnjzYR0dam3T8EinItcxHZhwzSciNIKo2YynQT4HfqTAPxOsLv9XcwOHgBcdyFIIpW3Av18LrdsHqmkRviEUZ7BDqKZLII5cnUQ/s1600-h/win.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5152737530524235442" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpPrZDY7nPyGoJOGorcpx1bUEYaQCQQKbR1SDDrTxEUFnjzYR0dam3T8EinItcxHZhwzSciNIKo2YynQT4HfqTAPxOsLv9XcwOHgBcdyFIIpW3Av18LrdsHqmkRviEUZ7BDqKZLII5cnUQ/s320/win.jpg" border="0" /></a><br /><div>congratulation </div><div></div><div>we won the match<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9ii-OZj-PwPcKnIDNgUtaIDCMkueEO1FW3LY8EAP-ZkXRCJ8ip7PA2ew5_P_Az9oqdqscEysxh8xa-6wdNebZEGKPcPJHcWWjnMonFZmRpwW5zn4oVNFHxYyigIFgwKC7Qk1_8ev89tAA/s1600-h/wine1.jpg"></a></div>प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-12379907946239529942008-01-07T00:10:00.000-08:002008-01-07T00:46:10.259-08:00कहीं तो शर्म करे बीसीसीआइसिडनी का टेस्ट अंपायरों के कारण हार गए तो बीसीसीआइ सिर्फ चीखता रह गया। पहले दिन से हो रही बेइमानी पर उसको समझ तब आइ जब मैच हार गए। हद तो तब हो गइ जब हरभजन सिंह पर नस्लभेदी टिप्पणी के आरोप मे तीन मैंचों का प्रतिबंध लगा दिया। रंगभेद के खिलाफ भारत का संघर्ष पूरे विश्व को पता है। इस पर अगर बीसीसीआइ इसे स्वीकार कर लेता है तो यह भारत के अब तक के रंगभेद के खिलाफ संघर्ष की हार है। बीसीसीऒइ ने इसका प्रतिरोध जितना कमजोर तरीके से किया है वह चिंतनीय है। यह एक खिलाडी का अपमान नहीं वरन पूरे देश की विचारधारा का अपमान है। रंगभेदी भारतीय खिलाडी नहीं वरन आस्टेलिया ऒर आइसीसी है। वास्तविकता तो यह है कि साइमंडस के तोर पर आस्टेलिया के पास कार्ड हे जिसका उपयोग वह किसी के खिलाफ भी रंगभेदी टिप्पणी करने के लिए लगा देता है। सही बात तो यह है कि आस्ट्रेलिया के खिलाडी उज्जड है। भारत के अपने दौरे में ट्राफी लेते समय उन्होंने शरद पवार को जिस तरह से धक्का दिया वह भी बीसीसीआइ को याद नहीं। उसके बाद भी शरद पवार की बीसीसीआइ गोरी चमडी के आगे नतमस्तक क्यों है। इनके लिए पैसा कमाना इतना महत्वपूर्ण हो गय कि कोइ इनको कितना ही अपमानित करे इन्हें फर्क नहीं पडता। इन्हे अपमानित होने का शौक हो सकता है मेहरबानी कर देश को अपमानित न करें।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-74284883866134878662007-12-11T23:22:00.000-08:002007-12-11T23:23:47.046-08:00भाजपा का नया प्रहसनअचानक भाजवा को बुद्ध की तरह ग्यान प्राप्त हो गया। उसे लगा कि लाल कृष्ण आडवानी को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए। लोग चौंक गए क्योंकि अभी तो लोकसभा के चुनाव में भी लगभग दो वर्ष दूर हैं। वामपंथियों की तमाम बंदर घुडकियों के बाद भी वे समर्थन वापस लेंगे ऎसा लगता नहीं। फिर भाजपा ने ऎसा क्यों किया। <br />वैसे आडवानी विपक्ष के नेता है और संसदीय लोकतंत्र में सरकार के पतन के बाद उसे ही प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलता है। मान लो चुनाव हो रहे होते और भाजपा सत्ता में आती तो वहीं प्रधानमंत्री होते लेकिन ऎसा भी नहीं है। फिर भी उन्हें प्रधानमंत्री घोषित कर दिया। इससे तो लगता है कि विपक्ष का नेता पद भी भाजपा के लिए एक मुखौटा था जो आडवानी लगाए हुए थे। चुनाव हुए भी तो भाजपा के अपने बलबूते सत्ता में आने की संभावना नहीं है उसे मजबूरन दूसरी पार्टियों के सहयोग की जरुरत होगी तब उन सहयोगियों को आडवानी मंजूर भी होंगे अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे चुनाव के बाद संसदीय दल ही नेता का चुनाव करता है और वह सरकार बनाने का दावा राष्टूपति से करता है। बहुमत का विश्वास होने पर उसे प्रधानमंत्री बनाया जाता है। भाजपा ने यह घोषणा कर संसदीय दल की बैठक को भी बेइमानी बना दिया है। इससे उसके संसदीय परंपराओ में विश्वास का भी पता चलता है। संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं किया जाता बल्कि जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है और वे ही अपने संसदीय दल के नेता का चयन करते हैं।<br />अगर यह ग्यान गुजरात चुनावों को ध्यान में रखकर किया है तब भी जनता से छलावा ही है। यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि गुजरात में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और आडवानी का चुनाव क्षेत्र गांधीनगर गुजरात मे ही है। तब भी यह गलत है। गुजरात की जनता के सामने मुख्यमंत्री के दावेदार को रखा जा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री का बे क्या करेंगे। यह जनता से एक धोखा नहीं तो क्या है।<br />इस पूरे प्रहसन का हमारे लोकतंत्र में कोइ अर्थ है। इतना उतावला भाजपा क्यों दिखा रही है।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-5122970914162615462007-12-01T00:32:00.000-08:002007-12-01T01:18:00.850-08:00महान लोकतंत्र का शोक दिवसबांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन को सच के पक्ष में बालने की सजा सुना दी गइ। सुकरात से लेकर आज तक हर सच कहने वाले को समाज के यथा स्थितिवादियों ने इसी तरह से उत्पीडित किया है। आज भी विश्व के तमाम जगहों पर सच के पक्ष में खडे लोगों को सजा देने का काम जारी है। लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मिदगी का दिन है। यह शर्मिदगी इसलिए भी ज्यादा है कि यह धत कर्म उन दलों ने किया है जो खुद को धर्मनिरपेक्षता सबसे बड़ा अलम्बरदार सीपीएम और सीपीआइ ने किया है। कांग्रेस और दूसरे मध्म मार्गी दलों को क्या कहें जिनका आधार ही जाति या धर्म है। यह सब किया गया क्योंकि कुछ अल्पसंख्यकों को तसलीमा नसरीन का लेखन पसंद नहीं था। कम्युनिस्टों को कहा जाता है कि वे नास्तिक होते है लेकिन जब वोट की बात आती है तो उन्हें धर्म का महत्व समझ में आ जाता है। वामपथी बडे दावे से कहते है कि हम तीस सालों से बंगाल में सत्ता में है लेकिन किस कीमत पर कामरेड। आपके इलाके में इतना कट्टरवाद इस दौरान जनता की बैग्यानिक चेतना बढाने को आपने किया क्या। एक वामपंथी सीपीएम ने तसलीमा को कोलकाता से निकाला तो दूसरा वामपथी सीपीआइ के नेता बडी बेशर्मी से घोषणा करता है कि तसलीमा ने विवादित अंश हटा दिए हैं। क्या यही लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी है जो संविधान में किसी को दी है। <br />तसलीमा ने जो लिखा वह एक राजनीतिक व्यवस्था में अल्पसंख्कों की दयनीय हालत को उजागर करने वाला था। यह इतना बुरा कैसे हो गया कि एक मीहला को जान बचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मजबूर दिखाइ दे रही है। यह भारतीय बुद़्धजीवी वर्ग के मुंह पर सत्ता का तमाचा है कि वह एक लेखिका के सम्मान की रक्षा नहीं कर सक। याद रखना चाहिए कि जो तसलीमा के साथ हुआ है वह किसी के साथ भी हो सकता है उस वक्त कहीं कोइ नहीं होगा जो सच के पक्ष में खडा हो सके। कट्टरवाद अब आदमखोर हो चुका है अभी कइयों की जान खतरे में है।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-33518233643137560682007-11-14T22:44:00.000-08:002007-11-14T23:08:08.545-08:00vergin land of tourism e chambal<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsTOCAuHxpLLky8cpvh5hsHLrdSF-kj1NCJQOESrXHE5S419aI7SvaG5EmT-7xKGBbTX-K49y7LoqqhoPoUa0qhCNmchyphenhyphen6D3CjNq52RANTWIEY09LzLzi3BlGU8GlKI9htvIXBXuu7IVpK/s1600-h/indianskimmer8c[1].jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5132956186195953490" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsTOCAuHxpLLky8cpvh5hsHLrdSF-kj1NCJQOESrXHE5S419aI7SvaG5EmT-7xKGBbTX-K49y7LoqqhoPoUa0qhCNmchyphenhyphen6D3CjNq52RANTWIEY09LzLzi3BlGU8GlKI9htvIXBXuu7IVpK/s320/indianskimmer8c%5B1%5D.jpg" border="0" /></a><br /><br />indian skimers on the bank of chambal<br />it is a rare bird and found only here. Native and foreign bird watcher came here to see them. <br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><div>.<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiioeFm7HY_l2m4JcW6de5gvpFB5CkU0sYMq5ZDY0I3qw_b-9ova8IW0gRl6qY5cDDmyuUGtQd4pVxIPrqpj5g3dY0z4ucJIi8emLhZ3vN7BNjQdPCx1wtGJkJzmwg15cLYnl9qDnT0Q3fc/s1600-h/15+Mugger_and_Skimmers.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5132955593490466594" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiioeFm7HY_l2m4JcW6de5gvpFB5CkU0sYMq5ZDY0I3qw_b-9ova8IW0gRl6qY5cDDmyuUGtQd4pVxIPrqpj5g3dY0z4ucJIi8emLhZ3vN7BNjQdPCx1wtGJkJzmwg15cLYnl9qDnT0Q3fc/s320/15+Mugger_and_Skimmers.jpg" border="0" /></a></div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div>indian skimers on the bank of chambal with crocodile</div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div><div><br /> </div><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpDtpg6-OUbLYLZCH4IAfleGL5BqB-f16d6nDlrp9qZcisNwlKhCHHrzIMR5nWE9kebbkp0u-SnCdDOExsyiaoJoxwvUet9WdHNm_Id4Plt6o1I6oVQy0YN5DqgroafK-1OJmHsF4OVUZS/s1600-h/15+chamba.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5132955060914521842" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpDtpg6-OUbLYLZCH4IAfleGL5BqB-f16d6nDlrp9qZcisNwlKhCHHrzIMR5nWE9kebbkp0u-SnCdDOExsyiaoJoxwvUet9WdHNm_Id4Plt6o1I6oVQy0YN5DqgroafK-1OJmHsF4OVUZS/s320/15+chamba.jpg" border="0" /></a><br /><br />indian gladiator in chambal.<br /><br /><br /><br /></div><div> </div><div><br /> </div><div> </div><div> </div><div> </div><div> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPMVKMNm76ANqk4qK-16-hth1uqG-y5omZ128jrdxiBOCiaeTYRbAwXlyoJtCA8ojz_mGFXowsQluETtxI58MfgxsbUyYjLiPadPWGqdfTjSMeB2C8-9oRtz_pKSMjX4-f23lxsavw9JsC/s1600-h/15+boat.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5132954893410797282" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPMVKMNm76ANqk4qK-16-hth1uqG-y5omZ128jrdxiBOCiaeTYRbAwXlyoJtCA8ojz_mGFXowsQluETtxI58MfgxsbUyYjLiPadPWGqdfTjSMeB2C8-9oRtz_pKSMjX4-f23lxsavw9JsC/s320/15+boat.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><br />steamer in chambal.<br /><br /><br /><br /><div></div></div></div>प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-34067839878139790982007-11-12T00:01:00.000-08:002007-11-12T00:39:28.887-08:00सीपीएम का असली चेहरा नंदीग्रामनंदीग्राम में जो कुछ हो रहा है उसके बारे में अब छन छन कर खबरें आने लगी हैं। यह भी अभी पूरा सच नहीं है। जो इन सीपीएम के चरित्र के बारे में जानते है उन्हें इस व्यवहार पर आश्चर्य नहीं होगा लेकिन बहुत से लोगों के लिए यह अजीब हो सकता है। अपनी जमीन को खोने के डर से जो लोग आंदोलन कर रहे है उन्हें सीपीएम का कैडर कैसे कुचल रहा है यह केवल नंदीग्राम में ही देखा जा सकता है। सीपीएम अपने जन्म से ही एक घनघोर अवसरवादी लोगों का जुंटा रहा है। प्रतिक्रियावाद इसकी रग रग में है। इसका कैडर किसी भी तरह से गुंडों से कम नहीं है। यही कैडर आज नंदीग्राम में तांडव कर रहा है। सत्तर के दशक में जब बंगाल के नौजवान समाज परिवर्तन के लिए लडं रहे थे तो सीपीएम का कैडर पुलिस का मुखबिर बना हुआ था। तब भी सत्ता के साथ मिलकर इन्होंने कम लोगों की हत्या नहीं करवाइ थी। ये लोग कैसे तीस साल से सत्ता में बैठे है यह इस घटना से पता चल जाता है। जनता का समर्थन इन्हें हो या न हो यह अपनी दबंगता से वोट पा ही जाते हैं। जिस तरह से ये नंदीग्राम में काम कर रहे है उसी तरह से ये पूरे राज्य में काम करते हैं। सीपीएम पूरी तरह से दोगली पार्टी है। ये जो कहती है करती ठीक उसका उल्टा है। मल्टीनेशान का विराध करने वाले नंदीग्राम में सेज के माध्यम से उसी संस्कृति का समर्थन कर रहे हैं। सुविधाभोगी राजनीति ने इनके नेताओं और कार्यकर्ताऒं को भ्रष्ट कर दिया है। रही सही कसर नए मुख्यमंत्री बुद्धदेव ने पूरी कर दी। सीपीएम ने अपने कैडर को पूरी छूट दे रखी है कि वे नंदीग्राम में किसी तरह का आतंक बना दें। इसी का परिणाम है कि वहां की नाकेबंदी कर लोगों को भूखों मारने की तैयारी कर ली गइ है। सबसे बडा ताज्जुब यह है कि पुलिस कैसे सीपीएम की पिछलग्गू बनी है और निर्दोष ग्रामीणों पर अत्याचार होते देख रही है। जिस तरह पुलिस का इस्तेमाल नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में किया वही सीपीएम बंगाल मे कर रही है। क्या कोइ फर्क है दोनों में। सारा देश बुद्धजीवी पत्रकार और संवेदनशील व्यक्ित विरोध कर रहा है लेकिन इनकी बला से। बंदा करात आ कर कैडर को जो संदेश देती है आखिर पालन तो वहीं होगा। आवश्यक है कि सीपीएम जैसी फासिस्ट पार्टी का विरोध उसी शैली में हो जैसे गुजरात के नरेंद्र मोदी का।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-66564827848417298332007-10-07T01:57:00.000-07:002007-10-07T01:58:46.191-07:00दुर्गा भाभीः इन्हें भी याद रखने की जरुरत है२००७ महिला क्रांतिकारी दुर्गावती देवी की जन्म शताब्दी का वर्ष है। आजादी की क्रांतिकारी धारा में उनको दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है। वे थीं हिन्द़ुस्तान सोशलिस्ट रिपिब्लक पार्टी का घोषणापत्र लिखने वाले भगवतीचरण वोहरा की पत्नी। दुर्गा भाभी का पूरा जीवन संघर्ष का जीता जागता प्रमाण है। जन्म से ही इनका संघर्ष शुरु हो गया। इनका जन्म इलाहाबाद में ७ अक्टूबर १९०७ को हुआ था। जन्म के दस माह बाद ही उनकी माताजी का निधन हो गया। इसके कुछ समय बाद पिता ने संन्यास ग्रहण कर लिया। अब वे पूरी तरह से माता-पिता के आश्रय से वंचित हो चुकी थी। इसी दौरान रिश्तेदार उनको आगरा ले आए। यहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। यह शिक्षा किस स्कूल में हुई यह निश्चत नहीं कहा जा सकता। संभवतः यह सेंट जोंस या आगरा कालेज रहा होगा। यहीं भगवती चरण वोहरा भी अपनी पढ़ाई किया करते थे। भगवती चरण वोहरा के पूर्वज तीन पीढ़ी पहले आगरा आकर बस गए थे। बाद में भगवती चरण वोहरा लाहौर चले गए। दुर्गा देवी भी कुछ समय बाद लाहौर चलीं गईं। यहां वह भारतीय नौजवान सभा कह सक्रिय सदस्य हो गईं। तब तक भगत सिंह का ग्रुप भी पंजाब में सक्रिय हो चुका था। भारतीय नौजवान सभा का पहला काम १९२६ में सामने आया। सभा ने करतार सिंह के शहीदी दिवस पर एक बड़ा चित्र बनाया था। इसे दुर्गा भाभी और सुशाला देवी ने अपने खून से बनाया था। सुशीला देवी भगवती चरण वोहरा की दीदी थीं। करतार सिंह ने ११ को साल पहले फांसी दी गई थी तब उसकी उमर १९ साल थी। वह फांसी पर झूलने वाला सबसे कम उमर का क्रांतिकारी था। दुर्गावती की शादी भगवती चरण वोहरा से होने के बाद वे पार्टी के अंदर दुर्गा भाभी हो गईं। पंजाब में उनके सहयोगी भगत सिंह सुखदेव आदि थे। साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए दस दिसम्बर को जो पार्टी की बैठक हुई थी उसकी अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने ही की थी। इसी बैठक में पुलिस अधीक्षक जेए स्काट को मारने का फैसला लिया गया। दुर्गा भाभी ने खुद यह काम करना चाहती थीं लेकिन पार्टी ने यह काम भगत सिंह और सुखदेव को सौंपा। इस दौरान भगवती चरण के खिलाफ मेरठ षड्यंत्र में वारंट जारी हो चुका था। दुर्गा भाभी लाहौर में अपने तीन वर्ष के बच्चे के साथ रहती थीं लेकिन पार्टी में सक्रिय थीं। १७ दिसम्बर को स्काट की गफलत में सांडर्स मारा गया। इस घटना के बाद सुखदेव और भगत सिंह दुर्गा भाभी के घर पहुंचे तक तक भगत सिंह अपने बाल कटवा चुके थे। पार्टी ने इन दोनों को सुरक्षित लाहौर से निकालने की जिम्मेदारी दुर्गा भाभी को दे दी। उन्होंने अपने घर में रखे एक हजार रुपये पार्टी को दे दिए। खुद भगत सिंह की पत्नी उनके साथ कलकत्ता के सफर पर निकल गईं। यह घटना भगत सिंह के साथ जुड़ी होने के कारण सबको पता है। दुर्गा भाभी ने ही कलकत्ता में भगत सिंह के रहने की व्यवस्था की थी। भगत सिंह के एसेम्बली बम कांड के बाद उन्होंने संघर्ष जारी रखा। भगत सिंह को छुडाने के प्रयास में उनके पति की मौत हो गई। भगत सिंह की फांसी और चंद्र शेखर की शहादत के बाद पार्टी संगठन कमजोर हो गया लेकिन दुर्गा भाभी का संघर्ष जारी रहा। १९३६ में बंबई गोलीकांड में उनको फरार होना पड़ा। बाद में इस मामले में उन्हें तीन वर्ष की सजा भी हुई। आजादी के बाद उन्होंने एकाकी जीवन जिया। उन्होंने गाजियाबाद में एक स्कूल मे शिक्षा देने में ही समय लगा दिया। १९९८ में उनकी मृत्यु हो गई। आजादी का इतिहास लिखने वालों ने दुर्गा भाभी के साथ पूरा इंसाफ नहीं किया। उन्हें भी थोड़ी जगह मिलनी चाहिए। आखिर चह भी मादरे हिन्द की बेटी थीं।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-89652495874188037072007-10-04T00:33:00.000-07:002007-10-04T00:58:57.884-07:00उत्तराखंड के सवा दो लाख घरों में तालेएक छोटी सी खबर हिन्दुस्तान में छपी थी कि सरकार के सर्वेक्षण में यह पता चला कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके में दो लाख से अधिक घरों में ताले लटके हुए है। इन घरों के लोग रोजी रोटी की तलाश में अपने गांवों से निकलकर या तो महानगरों में चले गए है या जिला मुख्यालयों में आ गए है। इतनी सी खबर व्यवस्था के चेहरे से नकाब उठा देती है। इतने सारे लोग एक दिन में तो गए नहीं होंगे। यह पलायन लगातार जारी रहा होगा। कभी किसी को इस पर सोचने का विचार भी नहीं आया। देश की आजादी किसी भी क्षेत्र के लिए खुशहाली लाई हो लेकिन उत्तराखंड में तो यह पलायन ही लेकर आई। दो लाख से ज्यादा घरों के सरकार की साठ साल की नीतियों का नतीजा हैं। लोगों का राज्य बनने के बाद देहरादून में बैठे सत्ताधारियों के लिए ये चुनौती भी है कि क्या अब इन घरों के ताले खुल पाएंगे या इनमें लगतार बढ़ोत्तरी होती चली जाएगी। ये ताले आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक चुनौतियां है। सरकार ने सर्वेक्षण तो करवा दिया अब इलाज क्या होगा। सामाजिक तौर पर देखा जाए तो यह शासन व्यवस्थापकों के आंतरिक उपनिवेश की कहानी है। जिसमें देश के कुछ हिस्सों को जानबूझकर आर्थिक रुप से पिछड़ा बनाया जाता है ताकि वहां से सस्ता श्रम और माल मिलता रहे। सत्ताधारियों की नजर में ये सिर्फ मतदाता और करदाता हैं। अलबत्ता नई अर्थव्यवस्था में ये उपभोक्ता भी बन गए हैं।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-48419693805675766002007-09-27T23:31:00.000-07:002007-09-28T01:08:20.449-07:00भगत सिंह ः क्रांतिकारी और विचारक भी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghfyw9oxBb84_ck_C2rYELUC8O3TKLugCHuA2fumTkMhyAFm_Yr5LiGI0G6JG5hDtTG6GKKji627qcnIN9rCKAatM-xmyl7uxWVquNJdmQVUXUIW_Rrw4g69uqYDmRY8UfT306IG1iU1zj/s1600-h/bhagat.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5115163810235776882" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghfyw9oxBb84_ck_C2rYELUC8O3TKLugCHuA2fumTkMhyAFm_Yr5LiGI0G6JG5hDtTG6GKKji627qcnIN9rCKAatM-xmyl7uxWVquNJdmQVUXUIW_Rrw4g69uqYDmRY8UfT306IG1iU1zj/s320/bhagat.jpg" border="0" /></a><br /><div>आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के बाद अगर किसी एक व्यक्ति ने भारतीय जनमानस को सबसे अधिक प्रभावित किया तो वह भगत सिंह ही थे। केवल तेईस साल में फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह का दर्शन भारतीय संदर्भों मे बहुत व्यापक था। आज भी वे नवयुवकों के लिए आदर्श बने हैं। भगत सिंह के साथ एक गलत बात यह हुई कि उनको केवल राष्ट्वादी के तोर पर प्रचारित प्रसारित किया गया क्यों कि यही देश के शासकों को रास आता है। वास्तव में भगत सिंह एक विचारक भी थे लेकिन उनके दर्शन को आम लोगों तक सही रुप में आने ही नहीं दिया गया। भगत सिंह केवल भारत की आजादी अंग्रेजों से ही नहीं चाहते थे बल्कि देशी सामंतवाद पूंजीवाद और शोषण के हर तरीके को खत्म करने के लिए लड़ रहे थे। उन्होंने कहा भी था भारतीय जनता के कंधे पर दो जुए रखे है एक विदेशी और दूसरा देशी सामंतवाद और शोषणा का। भगत सिंह ने हमेशा विश्व की क्रांतियों का अध्ययन किया। उन्होंने ही नौजवानों के संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के साथ सोशलिस्ट शब्द को जोड़कर उसे वैचारिक आधार दिया। इसके साथ-साथ इस शब्द को अपने साथियों के सामने रखा। भगत सिंह रुस की क्रांति से प्रभावित थे और उसी तरह का समाज बनाने के लिए काम करना चाहते थे। क्रांति के लिए उनका दिया नारा इंकलाब जिन्दाबाद आज भी हर अन्याय अत्याचार का विरोध करने वाले की जुबान पर होता है। भगत सिंह का तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का आंकलन भी सही था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के बारे में उन्होंने कहा था कि इसकी अंतिम परिणति समझौते में होगी और उनकी शहादत के लगभग १६ साल बाद यह सही साबित हुआ। काग्रेस के आंदोलन मे जिस तरह से जमीदार पूंजीपति और संपन्न तबका जुड़ा था उसको लेकर भगत सिंह का आंकलन सही था कि इससे आम भारतीय को राहत नहीं मिलेगी। इसलिए शोषण विहीन समाज के लिए क्रांति का रास्ता चुना। असेंबली में बम फेंकने का मामला भी पूरी तरह वैचारिक आधार लिए था। यह एक हीरो बनने का शार्टकट नहीं था जैसा कई मुबंइया फिल्मों में भगत सिंह के किरदार को दिखाया गया है। यह पूरी तरह से एक वैचारिक संधर्ष था। यह कहने में फिल्म वालों को भी परहेज है। संसद मे बम फेंकने का फैसला एक बड़ी बहस का परिणाम था। इसकी प्रेरणा भगत सिंह को फ्रांस की क्रांति पर लिखी बेलां की किताब से मिली। इस किताब में लेखक ने लिखा कि उसने युवाओं मजदूरों के बीच काम किया लेकिन असफल रहा अगर मैं संसद मे बम फोड़ देता तो शायद बहरी सरकार तक अपनी आवाज पहुंचा पाता। इन्ही वाक्यों से भगत सिंह का संसद पर बम फेंकने का विचार कौंधा। इसे उन्होंने स्वीकार भी किया। संसद में बम कौन फेकेगा इस पर भी पार्टी संगठन में बहस हुई। चंन्द्र शेखर भी उनको इस काम से दूर रखना चाहते थे लेकिन भगत सिंह ने कहा कि अदालत के मंच का जितना अच्छा उपयोग वे कर सकते हैं उतना कोई नहीं कर पाएगा और आखिर में भगत सिंह ने ही इस काम को अंजाम दिया। अदालत में भगत सिंह ने कहा कि वे आतंकवादी नहीं बल्कि देश की आजादी के सेनानी है। ये भगत सिंह के तर्क ही थे कि लाहौर हाईकार्ट के जज ब्रेल ने कहा कि ये वैचारिक आंदोलनकारी है। अदालत के बयानों के बाद भगत सिंह के पक्ष में जनसमर्थन आ गया। यहां तक कि कांग्रेस के अंदर भी उनको बचाने की मांग उठी। सुभाष चंद्र बोस ने तो गांधी की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगत सिंह को फांसी देने के विरोध में जनसभा भी की। यह उनकी विचारों का ही प्रभाव था। अब भी जरुरत भगत सिंह को एक विचारक के तौर पर समझने की है। अंत में वे पंक्तियां जो भगत सिंह को पसंद थी</div><br /><div>क़माले बुज़दिली है अपनी ही नज़रों में पस्त होनागर थोड़ी सी जुर्रत हो तो क्या कुछ हो नहीं सकताउभरने ही नहीं देतीं ये बेमाइगियाँ दिल कीनहीं तो कौन सा क़तरा है जो दरिया हो नहीं सकता</div>प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-43026238609523152732007-09-18T00:21:00.000-07:002007-09-18T01:02:06.777-07:00बाजार की जरुरत है टी-२०प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-39312266708789481102007-09-14T01:22:00.000-07:002007-09-14T01:23:51.023-07:00हिन्दी के बहाने क्षेत्रीय बोली और भाषाएंआज हिन्दी दिवस है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं विभाग आज हिन्दी का वार्षिक कर्मकांड की तरह समारोह करेंगे। यह एक मौका है कि हम हिन्दी ही नही भारतीय भाषाओं के बारे में सोचे कि आजादी के साठ साल बाद उनकी हालत क्या है। कहने को हिन्दी राष्ट् भाषा बना दी गई लेकिन साथ में अंग्रेजी को जोड़ दिया गया। दो दशक बाद ही हिन्दी विरोधी आंदोलन ने नई राजनीति को जन्म दिया। इसने भाषा के सवाल को उलझा कर रख दिया। अपनी सुविधा के लिए सत्ता ने तीन भाषा का फार्मूला दिया। इससे आम आदमी की भाषा को कोई लाभ नहीं हुआ। अलबत्ता क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं के लिए समस्या पैदा कर दी। वैसे भारत में कभी भी जनभाषा और राजभाषा एक नहीं रही। भाषाई आधार पर शासकों ने जनता से एक दूरी बनाए रखने की कोशिश की। जब भारत के जनमानस की भाषा पाली और प्राकृत थी तो राजभाषा संस्कृत थी। देवभाषा के तौर पर प्रतिष्ठित इस भाषा ने विशेष किस्म का आरक्षण समाज में लागू किया। उच्च पदों पर केवल वही लोग पहुंच पाते थे जो इस भाषा में पारंगत थे। मध्यकाल में जब जनभाषा हिन्दवी या अन्य क्षेत्रीय बोलियां थीं तो शासन की भाषा फारसी बनी रही। यह सांस्कृतिक उच्चता का मान कराती रही। ब्रिटिश काल में हिन्दी के एक भाषा के तौर स्थापित होने पर अंग्रेजी शासन की भाषा बन गई। यह आज तक जारी है। अंग्रेजों ने सचेतन प्रयास से अंग्रेजी को स्थापित किया। भूमंडलीयकरण के दौर में पूरे विश्च को एक रुप में ढालने की कोशिश हो रही है तो एक ही एक भाषा की जरुरत इस प्रक्रिया को हो रही है। इस प्रक्रिया ने भारतीय भाषाऒं और बोलियों संकटग्रस्त कर दिया है। हालत यह है कि हर बच्चा अंग्रेजी माध्यम में ही पारंगत होना चाहता है। ताकि वह अपने लिए अधिक रोजगार और प्रगति के अवसर पैदा कर सके। इस कोशिश में वह अपनी भाषा की ओर उसका ध्यान ही नहीं है। क्षेत्रीय भाषा और बोलियों का प्रयोग अब घरों में भी नहीं हो रहा है। इसका नतीजा यह हुआ कि भूमंडलीकरण दौर के बच्वे अपनी भाषा से वंचित हो रहे है। भाषा की जानकारी न होने पर संस्कृति की भी जानकारी नहीं हो पाती है। भले ही अभी यह स्पष्ट तौर पर दिखाई न दे रहा हो लेकिन समाज के अंदर बह रही धारा को अनुभव किया जा सकता है। अंग्रेजी के वर्चस्व ने हिन्दी को कोने में धकेला क्यों कि अवसर और प्रगित के साधन उसके पास कम थे लेकिन क्या यही हिन्दी के वर्चस्व ने क्षेत्रीय बोलियों के साथ नहीं किया। हिन्दी इलाके में बोली जाने वाली अवधी ब्रज बुंदेलखंडी भोजपुरी मगधी कुमाउंनी गढवाली राजस्थानी का क्या हुआ। हिन्दी माध्यम से शिक्षा देने के कारण इन इलाकों की नई पीढ़ी अपनी भाषा और बोली से कटती चली गई। इस भाषा और बोलियों को बोलने वालों की संख्या लगातार कम होती चली गई। हिन्दी भाषी इलाके कई बोलियों को नई पीढ़ी जानती ही नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ कि इन भाषा और बोली जानने वालों को इसके आधार पर रोजगार नहीं मिल सकता था। सीधा सा तर्क है कि जो भाषा रोटी नहीं देगी वह कमजोर हो जाएगी। कल हिन्दी का वर्चस्व क्षेत्रीय बोलियों के लिए खतरा था अब यह खतरा दोगुना हो गया है। अब हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी भाषा भी एक बडे शत्रु के रुप में मौजूद है। हिन्दी की प्रगति के लिए आवश्यक है कि इन बोलियों के साथ एक नए सामंजस्य की व्यवस्था की जाए। अगर क्षेत्रीय भाषाएं और बोलियां नहीं बचेंगी तो हिन्दी कभी मजबूत नहीं हो सकती। ये सभी छोटी धाराएं है जो मिलकर हिन्दी को एक बड़ी नदी का रुप देती है। जब छोटी धाराएं ही सूख जाएंगी तो नदी का आकार कम होना ही है। जरुरत इन छोटी धाराओं को बचाने की है। हिन्दी के लिए चिंतित विद्वानों को इन बोली भाषओं के बारे में भी सोचना चाहिए। हिन्दी भले ही विज़ापन और फिल्मों की भाषा बन गई हो लेकिन वह क्मशः कमजोर होती जा रही है।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-36843916664281919552007-09-12T02:13:00.000-07:002007-09-12T02:14:08.259-07:00आगरा में डाक्टरों की हड़तालबारह सितम्बर को आगरा के सभी निजी नर्सिग होम अस्पताल के डाक्टरों ने हड़ताल कर दी। यह हड़ताल कहने को तो अनिश्चत कालीन है लेकिन कब तक चलेगी कहा नहीं जा सकता। इस हड़ताल ने मरीजों और डाक्टरों के रिश्तों को एक नए सिरे से देखने का मौका दिया है। यह हड़ताल इसलिए की गई कि पिछले दो महीनों में दो दर्जन से अधिक नर्सिंग होम और डाक्टरों पर हमले किए गए। वहां तोड़फोड़ की गई। हर बार यह हंगामा अस्पताल में भर्ती मरीजों के तीमारदारों ने की। मरीज के तीमारदार यह आरोप लगाते है कि डाक्टर ने सही इलाज नहीं किया। उसने पैसे पूरे लिए लेकिन इलाज में कोताही बरती। इसके विपरीत डाक्टरों का कहना है कि मरीज और उनके तीमारदार पैसे देने से बचने के लिए इस तरह के हंगामे करते है या करवाते है। दोनों पक्षों के आरोपों का आंकलन करें तो पूरे विवाद की जड़ में पैसा है। सही बात तो यह है कि हमारी लोककल्याणाकारी सरकारों के सरकार स्वास्थ्य के प्रति लगातार कम होते जा रहे हैं। अच्छी स्वास्थय सेवाएं पाना लगातार कम होता जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी है। इससे भी बढ़कर सरकारी अस्पताल के डाक्टरों की संवेदनहीनता है। इनकी संवेदनहीनता का उदहारण आगरा के खंदौली क्षेत्र में हुआ गैस से झुलसे लोगों का मामला है। इनको सफदरजंग में इसलिए भर्ती नहीं किया गया कि वहां जगह नहीं थी। परिणाम यह हुआ कि कुछ बच्चों की मौत हो गई। इस पर दिल्ली हाइकोर्ट ने संज़ान लिया और अस्पताल प्रशासन को नोटिस भी जारी किया। यह मामला दिल्ली का था इसलिए सबको पता चल गया लेकिन दूरदराज के इलाकों में ऍसा होता तो किसी को पता ही नहीं चलता। बात डाक्टरों की हड़ताल की है। निजी अस्पताल के डाक्टर इस सारी स्थित के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। आज भी डाक्टरों को एक सम्मानजनक तौर पर देखा जाता है। यह माना जाता है कि वे पैसे से अधिक मानव सेवा को महत्व देंगे। हो तो इसका उल्टा ही है। निजी क्षेत्र के डाक्टरों का एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना रह गया है। इसके लिए वे कोई भी तरीका अपनाने को तैयार हैं। गांव और देहात से मरीजों को उनके नर्सिग होम तक लाने के लिए पूरा एक तंत्र काम करता है। गांव में बैठा झोलाछाप डाक्टर इनके ऍजेंट का काम करता है। वह गांव के मरीज को एक विशेष नर्सिंग होम तक पहुंचाने के एवज में अच्छी खासी रकम डाक्टर से वसूलता है। डाक्टर इस रकम को मरीज पर ही डाल देता है। इसका परिणाम यह कि इलाज की कीमत बढ़ जाती हे। इसके अलाला दवाइयों की खरीददारी टेस्ट कराने में भी जबरदस्त खेल होता है। हर मेडिकल टेस्ट और दवाइयों की खरीददारी में डाक्टरों का कमीशन निश्चित है। इन सबका पैसा कौन देगा। जाहिर है मरीज। दवा कंपनियां कितने प्रलोभन डाक्टरों को देते है यह किसी से छिपा नहीं है। इनका प्रभाव जनता में डाक्टर की नकारात्मत छवि के तौर पर बनती है। जनता को जब भी मौका मिलता है वह इनके खिलाफ हो जाती है। हालत तो तब और भी खराब हो जाते है जब निजी अस्पताल विशेषज़ तो रखते नहीं है लेकिन आपरेशन जरुर करते है। तब ये सरकारी अस्पतालो के डाक्टरों को बुलाते हैं। ये डाक्टर सरकारी अस्पताल मे सारी सुविधा होने पर भी मरीजों को निजी नर्सिग होमों की ओर धकेल देते है। बाद में खुद वहां जाकर काम करते है और बदले में बढ़िया फीस वसूलते है। इसके लिए एक बड़ी सीमा तक नर्सिंग होम के संचालक दोषी है। एक ओर तो वे सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों को भ्रष्ट करते है दूसरी ओर गरीब मरीजो पर अनावश्यक बोझ डालते हैं। डाक्टा चाहते है कि वे कितने ही पैसे ले या गलत काम करे फिर भी उनको मानव की सेवा करने वाला मानकर सम्मान मिलता रहे। ऍसा हो नहीं सकता। अगर डाक्टर वास्तव मे सम्मान चाहते है तो उनको मानवता की सेवा करने वाला ही बनना होगा पैसे के पीछे भागने वाला धनपशु नहीं। वक्त अपने गिरेबां में झांकने का है।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-61272331567930776652007-09-10T01:16:00.000-07:002007-09-10T01:17:28.740-07:00सेलवा जूडूम कर सचकेंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का यह कहना कि सेलवा जूडूम की पुनर्समीक्षा की जाएगी। इस व्यक्तव्य से माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे इस आंदोलन का सच सामने आ गया। छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार ने दो साल पहले माओवादियों के प्रभाव को कम करने के लिए सेलवा जूडूम शुरु किया था। इस आंदोलन की सबसे चौकाने वाली बात यह थी कि इसे कांग्रेस के सांसद महेन्द्र कर्मा चला रहे थे लेकिन भाजपा के पूरे संगठन का इसे समर्थन इसे था। माओवादियों के खिलाफ भाजपा और कांग्रेस एक हो गए थे। आदोलन का मुख्य काम बांटो और कमजोर करो था। इसने आदिवासियों में मतभेद पैदा करने का प्रयास किया। इस आदोलन को हमेशा संदेह से देखा गया। सेलवा जूडूम में गांव के प्रमुखों को यह अधिकार दिया गया कि वे अपने इलाके में संदिग्ध लोगों या कहे कि माओवादियों से सहानुभूति रखने वालों को चिन्हित करे। ताकि उस इलाके में माओवादियों का संगठन तोड़ा जा सके। सीधा सा अर्थ था कि एक विचार से लड़ने के लिए दोनों राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने खुद को असमर्थ पा रहे थे। इसके लिए समाज के लंपट तत्वों का सहारा लिया। इसके असफल होने की संभावना पहले से ही थी और यह अपने मकसद में यह आंदोलन पूरी तरह से असफल हुआ। इसके संचालकों ने जिन तत्वों को इसमें शामिल किया वे आदिवासियों के संपन्न तबके को शामिल किया। यह संपन्न वर्ग आदिवासियों के हितों के खिलाफ जाकर संपन्न बना था। इसकी अपने समाज में कोई प्रतिष्ठा नहीं थी। इस वर्ग ने पहला काम तो यह किया कि अपने दुश्मनों को माओवादी बताना शुरु कर दिया। दूसरा जिन लोगों ने आदोलन में शामिल होना नहीं चाहा वे भी इसके निशाने पर आ गए। दूसरी ओर सेलवा जूडूम में जाने वालों को माओवादियों ने अपना वर्ग शत्रु मान कर सफाया करना शुरु कर दिया। सीधा सा परिणाम यह हुआ कि आदिवासी दोनों संधर्षरत पक्षों के बीच फंस गए। माओवादियों से बचाने के लिए सरकार ने कई गांवों के लोगों को शिविर में रखा। लगभग पचास हजार लोगों को शिविर में रखा गया। सेलवा जूडूम माओवादियों को तो कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन सरकार की साख दांव पर लग गई। सेलवा जूडूम ने आदिवासियों का जीना कठिन कर दिया। इसका ही परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में आदिवासी आंध्रप्रदेश के सीमांत जिलों में चले गए। अब सत्ता पर बैठे लोगों को समझ में आ रहा है कि यह गलत था। सही बात यह है कि हाशिए पर फेंके गए गरीब विचत और आदिवासी जब भी अपने हक की मांग करेंगे तो सेलवा जूडूम जैसे आदोलन चलाए ही जाएंगे। होना तो यह चाहिए कि इन तबकों के बाजिब हकों को हमारा सत्ता प्रतिष्ठान स्वीकार कर ले और उन्हें भी विकास का लाभ देने का प्रयास करे।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-74895746722029097692007-09-07T22:39:00.000-07:002007-09-08T00:22:46.129-07:00छात्र संघों पर रोक क्योंउत्तर प्रदेश शासन ने एक आदेश जारी कर छात्रसंघों के चुनावों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके पीछे कारण दिया गया है कि सरकार शिक्षा का वातावरण सुधारना चाहती है और विश्वविद्यालय औरमहाविद्यालयों में गुण्डागर्दी खत्म करना चाहती है। सामान्य तौर से यह दोनों काम सरकार के ही है कि वह बेहतर शिक्षा बच्चों काे दे और आम आदमी के जानमाल की रक्षा करे। सवाल यह है कि केवल छात्र संघों के चुनाव को रोकने से यह सब होम जाएगा। सरकार का यह कदम घनघोर अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र में आस्था रखने वाला एक सामान्य सोच का आदमी भी इसका समर्थन नहीं कर सकता है। सरकार का यह सोच कि छात्रसंघ सिर्फ गुंडागर्दी का अड्डा बन गए है गलत सोच का नतीजा है। छात्रों के भी कुछ हित है उनकी भी समस्याएं हैं। आखिर छात्रसंघ न होने पर विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रों के हक की बात कौन करेगा। समस्या केवल छात्रों की नहीं बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था का है। सारी शिक्षा व्यवस्था ही चरमरा गई है। न तो सही समय पर परीक्षा होती हैं और न परिणाम आते हैं। जितने दिन पढ़ाई होनी चाहिए उतनी कब होती है। इसके लिए भी छात्र कैसे जिम्मेदार हो गए। अगर इनको सही करने के लिए छात्र मांग करें तो इसे गुंडागर्दी कहा जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह पहले शिक्षा का कलैन्डर तो सही कर ले फिर कोई दूसरी बात करे। कुलपति से लेकर बाबू तक की नियुक्ति तक तो सरकार अपने आदमियों की करती है। छात्र संघ के चुनाव में राजनीतिक दल खुलकर भाग लेते हैं। यह गलत भी नहीं है क्योंकि इसके बहाने छात्रों के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर बहस तो होती है। इससे छात्रों में राजनीतिक सक्रियता तो आती है। <br />सही बात तो यह है कि छात्र संघ का चुनाव लोकतंत्र का पालना है। यहीं से भावी नेता इन्हीं संस्थानों से आएंगे। अगर शिक्षा क्षेत्र से नेता नहीं आने चाहिए तो सरकार बताए कि किस फील्ड से भावी नेताओं को आना चाहिए। यह आदेश शिक्षा विरोधी है। इसका परिणाम यह होगा कि समाज में किसी भी तरह से हीरो बन जाने वाला युवा नेता बन जाएगा। एक छोटे से वर्ग का नेता घटिया तरीके अपना कर ही बनेगा। गुंडागर्दी का असली कारण विचारविहीन राजनीतिक दलों का सत्ता में आना है। इनकी विचारविहीनता ही छात्रसंघों के चुनाव में दिखाई देती है।<br />अगर यह मान भी लिया जाय कि छात्रसंघों के नेता गुडे है तो इस देश की संसद और विधानसभाओं पर भी रोक लगनी चाहिए। वहां तो सजायाफ्ता बैठै है। कई माननीयों पर हत्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने का आरोप है। चुनाव जीतने के लिए कितना धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल होता है यह किसी से छिपा है क्या। छात्र राजनीति ने ही एनडी तिवारी प्रकाश करात सीताराम येचुरी प्रफुल्ल कुमार महंत लालू प्रसाद यादव अरुण जेटली विजय गोयल को संसद तक पहुचाया है। पूर्वोत्तर के कई सांसद और विधायक छात्र राजनीति की ही देन हैं। ये छात्र नेता ही थे जिन्होंने गुजरात में भ्रष्ट चिमन भाई पटेल सरकार के खिलाफ मोर्चा लिया और बाद में बिहार में भी छात्रों ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। <br />सही तो यह है कि सत्ता हमेशा युवाओं से डरती है। इसलिए वह यह प्रयास करती है कि युवाओं को कभी भी एकजुट न होने दो। यही कारण है कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को इस तरह से संचालित किया जाए कि छात्र एक स्थान पर आए ही नहीं। दूरस्थ शिक्षा इसका सबसे अच्छा उदहारण है। छात्र संघों के चुनाव पर रोक का विरोध होना ही चाहिए।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-29605819730647119712007-09-07T00:00:00.000-07:002007-09-07T00:48:26.712-07:00कृष्ण भक्तों से मैली हुई यमुनाकृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा में देश भर से कम से बीस लाख लोग आए यद्यपि मथुरा वाले तो पचास लाख लोगों के आने का दावा कर रहे हैं। आंकड़ा चाहे कुछ भी हो। इतना तो निश्चित है कि कई लाख लोग आए थे अपनी भक्ति और आस्था के कारण समाज के सबसे गरीब लोग यहां आते हैं क्योंकि इन गरीबों को लगता है कि भगवान ही कोई चमत्कार करेंगे और उनकी हालत बदल जाएगी अगर कुछ नहीं भी होगा तो अगला जन्म तो सुधर ही जाएगा। इतने लोगों के लिए प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की हुई थी। दूर दराज से आए लोगों को मथुरा में जमुना के किनारे और मंदिरों के आसपास खुले आसमान के नीचे सोए हुए देखा जा सकता था। थोड़ी सी जगह देखकर बस खड़ी कर दी और चार ईंटों को जोड़कर चूल्हा बना लिया। उस पर ही मोटी रोटियां सेक कर भूख मिटा ली। एक चादर बिछाकर सो गए। यहां तक तो सब ठीक है। यह देखकर उनकी आस्था के प्रति श्रद्धा भी होती है। असली समस्या तो तब होती है जब ये सब लोग गंदगी फैला देते है। पूरे शहर में खाने की गंदगी ही दिखाई देती है। असली गंदगी तो दूसरे दिन दिखती है जब हर झाडी और पेड़ के पीछे मानव मल ही दिखाई देता है। सारा यमुना का किनारा गंदगी से भर जाता है। हालत इतनी खराब हो जाती है कि कई हफ्तों तक वातावरण से दुर्गन्ध जाती ही नहीं है। फिर यह सारे की सारी गंदगी यमुना में ही चली जाती है। पहले से ही प्रदूषित यमुना और कितनी गंदी हो जाती है। इसकी किसी को चिंता नहीं है। न किसी को परवाह है। तीन दिन के ब्रज प्रवास के दौरान कृष्ण भक्त कितनी यमुना को गंदा कर घर चले जाते हैं।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-2492763370504822952007-09-06T00:41:00.000-07:002007-09-06T00:42:27.922-07:00ब्रज में योगमाया कहां हैअभी कृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई। स्वाभाविक है पूरे ब्रज में उल्लास था। इसके बाद गोकुल में नंदोत्सव भी हुआ। इस सारे कार्यक्रम में एक बात जबरदस्त तरीके से झकझोरती रही कि जिस बालिका के स्थान पर कृष्ण को गोकुल में रखा गया था उसका कोई भी उत्सव ब्रज के किसी स्थान पर नहीं मनाया गया। उस बालिका को योगमाया कहा गया। इसके बारे में किंबदंती है कि कंस के हाथ से छूट कर वह आकाशवाणी करती हुई चली गई। योगमाया मिर्जापुर में विध्यवासिनी के तौर पर अधिस्थापित हो गई। वहीं उनकी पूजा अर्चना होती है। कहने को गोकुल में योगमाया का एक मंदिर है और उनकी पूजा होती है। योगमाया के उत्सव न होने पर वहां के निवासियों का कहना है कि यशोदा ने कभी उसको देखा ही नहीं क्योंकि उसके जन्म के समय वह गहरी निद्रा में थी और बव्वे के तौर पर उन्होंने कृष्ण को ही देखा। कृष्ण की गतिविधियां होने के कारण उनका ही महत्व है। यदि गंभीरता से देखा जाय तो यह सारी व्यवस्था महिला विरोधी दिखाई देती है। सबसे बड़ा अपराध तो एक बालिका को उसकी मां से अलग करना ही है। यदि यह मान भी लिया जाय कि समाज के व्यापक हित में यह बलिदान आवश्यक था तब भी उस बालिका को इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए। लेकिन हमारे समाज में तो महिलाओं को हमेशा ही कमतर माना गया। उनका त्याग और बलिदान किसी काम का नहीं। उन्हें तो घर परिवार और समाज के हित में ही काम करना चाहिए। योगमाया के साथ अन्याय आज की कितनी ही योगमायाओं के साथ हो रहा है। भ्रूण हत्या से लेकर दहेज के लिए कितनी ही योगमाया मारी जा रही है। कृष्ण को भगवान मानने वाले कभी उस नवजात बालिका के बारे में भी सोचत। बालिका को भगवान न मानते लेकिन एक इंसान की तरह तो उससे व्यवहार करते।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-73724866982543896982007-09-05T23:39:00.000-07:002007-09-05T23:43:39.791-07:00भुखमरी और मौत<div>हमारे देश में गरीब की मौत कभी खबर नहीं बनती है क्याकि जीडीपी और सेंनसेक्स लगतार बढ़ रहा है। उड़ीसा के कालाहांडी में हैजा और भूख से लोग मर रहे हैं। कुछ आप भी सोचिए </div><br /><br /><br /><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI3yqpCrHEbkB1uKfsZVdPJDNS3zis2UpzoO7w-HtFkE4yvWV8Ohwcli37QB6trjIa3h1OHxHh36DMwKbWhAdO9M9sq72JYuPBobFa11xrrRdZf2QTK9uJ7PZ4kg4W6-HK43hlugK0-YV7/s1600-h/6+bhukh+1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5106977639352174754" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI3yqpCrHEbkB1uKfsZVdPJDNS3zis2UpzoO7w-HtFkE4yvWV8Ohwcli37QB6trjIa3h1OHxHh36DMwKbWhAdO9M9sq72JYuPBobFa11xrrRdZf2QTK9uJ7PZ4kg4W6-HK43hlugK0-YV7/s320/6+bhukh+1.jpg" border="0" /></a><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTx_ZaEIrTswdK8jfWVV0p879-cHP-I72HVzrCc0KCIQaqtWBLESybMMkf68UM2sPhQ9rIlS1naEzbOmT73RSYP-7pxulFGPLs8NU53258AoFQQFIqcA9iSYvGWh1bSgMOg2CKbO5vO4dU/s1600-h/6+bhukh.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5106977510503155858" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" 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गुस्सा आसमान पर आ चुका था। तब तक भीड़ में असमाजिक तत्व घुस चुके थे। उन्होंने भीड़ को उकसाना शुरु कर दिया। इसके बाद भीड़ ने सड़क पर वाहनों कों रोक कर आग लगाना शुरु कर दिया। देखते ही देखते एक दर्जन से ज्यादा ट्रकों और दूसरे वाहनों को फूंक दिया गया। पुलिस इतनी कम संख्या में थी कि वह भीड़ का काबू पाने में असफल साबित हो रही थी। भीड़ का अगला निशाना घटना स्थल पर मौजूद पुलिस वाले बने। पुलिस कर्मी थाना छोड़कर भाग गए। भीड़ का अब तक सारा गुस्सा पुलिस और प्रशासन के खिलाफ था। पुलिस उपद्रवियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रही थी। क्योंकि मरने वाले एक विधायक के रिश्तेदार थे। न तो तब तब पुलिस ने लाठीचार्ज किया और न कोई दूसरा तरीका ही भीड़ को हटाने के लिए किया। विधायक का प्रशासन पर दबाव था कि भीड़ के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाया जाय। पथराव से बचने को पुलिस सड़क के दूसरी ओर चली गई। इधर पुलिस की हालत यह थी कि उसके आंसू गैस के गोले और बंदूके बेकार साबित हो रही थी। अब तक मुस्लिम मोहल्ले से फायरिंग होने लगी। पुलिस को अपने बचाव का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा था। भीड़ के गुस्से से बचने के लिए पुलिस ने सांप्रदायिकता का कार्ड खेला। पुलिस के उकसावे पर ही हिंदू मोहल्ले के लोग उसके साथ एकजुट हो गए। अब यहां के लंपट तत्वों ने पथराव करना शुरु कर दिया। इन तत्वों को पुलिस का पूरा संरक्षण था। देखते ही देखते हादसा सांप्रदायिक रुप लेने लगा। धर्म स्थलों के अलावा व्यापारिक प्रतिष्टानों को भी निशाना बनाया जाने लगा।लगभग तीन घंटे तक शहर आग में झुलसता रहा। इसके बाद ही प्रशासन सक्रिय हुआ। प्रशासन ने कर्फ्यू की घोषणा का कोई असर नहीं हुआ। भीड़ सड़कों पर ही रही पुलिस के लाठीचार्ज और गोली चलाने के बाद भीड़ हट सकी। इसके बाद शहर में शांति है। सबसे आश्खर्य इस बात का है कि किसी भी राजनीतिक दल का नेता लोगों को समझाने नहीं आया। अलबत्ता शांति होने के बाद अब मेढ़क बाहर आकर टर्रा रहे हैं। एक सड़क हादसे को नेता और प्रशासन कैसे सांप्रदायिक हो जाता है यह आगरा में २९ अगस्त को देखा।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-62452080299936578652007-08-29T21:26:00.000-07:002007-08-29T21:39:35.600-07:00जलता आगरा<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOR18ADRcdbPlNRtxQvU2u0RZ9g62LUjsei8eaVCe-gMmIyr_rvpYEyc3foapceYYxsu6_OJ0ktMCU7w0oow2ymfk5XG3M3bXE1TjZR-IK09-hoSOwplP-yfr_dvcOYgVGJ3HUn77BcnDr/s1600-h/agra+9.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5104348505186699394" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOR18ADRcdbPlNRtxQvU2u0RZ9g62LUjsei8eaVCe-gMmIyr_rvpYEyc3foapceYYxsu6_OJ0ktMCU7w0oow2ymfk5XG3M3bXE1TjZR-IK09-hoSOwplP-yfr_dvcOYgVGJ3HUn77BcnDr/s320/agra+9.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhY4BK_45_r8qXLmnyaNfmTU_W40GtKkcePPJB2Tug3HaHHsicnzhyGFtXZ2KrPyxDr58K059X_nmJULHZXJ7JDi_COseYs4UB-A81xGsjHwxN5oIVO3bQiKBg3jAU-UZ0R27-2GlOL2-DA/s1600-h/agra+8+jpg.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5104348174474217586" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; CURSOR: hand" alt="" 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पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8135638045909062587.post-27662379807993009642007-08-27T01:20:00.000-07:002007-08-27T01:21:04.396-07:00संजय के बाद सलमानकुछ लोग कह रहे है कि बालीबुड के आजकल बुरे दिन चल रहे हैं। इसके सितारौं के सितारे गर्दिश में हैं। वास्तव में ऐसा है क्या। शायद पहली बार इस देश की अदालतों ने पैसे वालों के खिलाफ फैसला दिया है। अब तक का इतिहास तो यह ही रहा हे कि कानून को पैसे वालों ने खरीद ही लिया। बालीबुड में काम करने वाले अभिनेता तो खुद को किसी भगवान से कम नहीं समझते हैं। वे यह मानकर चलते है कि लोग हमारे दीवाने है तो हमें कुछ भी करने का अधिकार है। कानून तो उन लोगों के लिए है जो सड़क पर रहते है। बालीबुड में केवल संजय या सलमान ही नहीं है जिन्होंने कानून के साथ खिलबाड़ किया है। सलमान को सजा होने पर सबसे ज्यादा इस बार भी हमारा मीडिया ही रो रहा हे। उसका रोना तो अब खलता भी नहीं है क्यों कि उसका सारा खेल टीआरपी के लिए हे। इसलिए उसे कुछ भी करने का अधिकार दे दिया गया है। चाहे अपराध हो या भूत प्रेत सब कुछ जायज है। दुख तो हमारे सांसदों के बयानों को लेकर हो रहा है। सलमान की सजा पर कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला कहते है एक चिंकारा को मारने की सजा पांच साल कोई तुक नहीं है। उनका तो यह भी कहना है कि जेल की सजा के बदले पैसे ले लो करोड़ या दो करोड़। इसका क्या मतलब है कि अपराध करो और पैसा देकर छूट जाओ। कोई इन सांसद महोदय से पूछे कि अगर कोई गरीब चिंकारा की हत्या करता और उसके पास करोड़ रुपये न हो तो वह जेल जाएगा लेकिन सलमान को मत भेजो क्योंकि उसके पास करोडों रुपये हैं। सीधा सा बोलिए फारुक साहब कि आप पैसेवालों को सजा देने के खिलाफ हैं। संसद में क्या आप सिर्फ पैसे वालों के प्रतिनिधि है या आम आदमी के। इतना ही नहीं वे कहते हैं कि पैसा लेकर तुम जानवरों की रक्षा कर सकते हो। क्यों करें जानवरों की रक्षा ताकि कोई सलमान फिर आए और चिंकारा की हत्या कर दे। चिंकारा केचल एक जानवर नहीं हमारे इकोलाजी का हिस्सा है। उसके न होने का असर पूरी व्यवस्था पर पड़ेगा तब आप पैसे देकर कायनात को नहीं बचा सकेंगे फारुक साहब। यह हमारे सांसदों की धनपतियों के आगे नतमस्तक होने का सबूत है। इन साहब की इसी मानसिकता का परिणाम है कि आज कश्मीर बर्बाद हो गया है। वहां भी ये साहब अमीरों के साथ उनके गलत सही कामों के साथ रहे और प्रदेश जलता रहा। आप तो साहब इस देश की सर्वोच्च कानून बनाने वाली संस्था में बैठे हैं बना क्यों नहीं देते कानून कि करोड़पति को कानून तोड़ने पर जेल नहीं भेजा जाएगा केवल पैसा लिया जाएगा। जेल केवल वह आदमी जाएगा जो पैसा नहीं दे सकता है यानी गरीब। एक आर सांसद है दारा सिंह पहले निर्दलीय थे अब भाजपा के हैं। वे भी कह रहे है कि एक जानवर को मारने की सजा पांच साल गलत है। भारत में रोज कितने ही जानवर मर रहे हैं। उनको भी नहीं मालूम कि चिंकारा क्या है और उसका स्थानीय लोगों से क्या संबंध है उनको स्थानीय निवासियों की भावनाऒं की कोई चिंता नहीं। यह बात सही है कि यदि बिश्नोई समाज इतनी शिद्दत से यह मामला नहीं लड़ता तो सलमान को कभी सजा नहीं होती। इससे एक बात भी जाहिर होती है कि पर्यावरण की रक्षा केवल स्थानीय निवासी ही कर सकते है। सरकारी मशीनरी तो किसी को क्या सजा दे पाएगी क्यों कि दारा सिंह और फारुक अब्दुल्ला जैसे सांसदों के दबाच कुछ करने भी देगा। जब सांसदों की यह हालत है तो दूसरों के बारे में क्या कहा जाय।प्रेम पुनेठाhttp://www.blogger.com/profile/18215880671677795323noreply@blogger.com3