Thursday, August 9, 2007

तस्लीमा नसरीन

हैदराबाद में तंस्लीमा नसरीन पर वहां के मुिस्लम कट्टरपंथियो ने हमला किया उससे दो दिन पहले मुंबई में शिवसैनिकों ने एक प्रोफेसर पर हमला किया ऒर उनके मुंह पर कालिख मल दी। इन दोनों में एक ही समानता है कि इन राजनीतिक दलों के कायकर्ताऒं ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। इनके लिए यह कोइ बड़ी बात भी नहीं है। हमारे देश के लोकतन्त्र में अब तो यह प्रचलन हो गया है कि दंगा करना राजनीतिक दलों का अधिकार है। शिवसैनिक तो तोड़फोड़ करने के लिए कुख्यात हैं। जिन लोगों ने तस्लीमा पर हमला किया वे विधायक हैं लेकिन उन्हें कानून की क्या चिंता। हम तो खुद ही कानून बनाते हैं कानून हमारा क्या कर लेगा। धर्म के नाम पर दंगा करने का व्यापक अधिकार मिला हुआ है। तस्लीमा नसरीन का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने हर जगह इन तत्वों का विरोध किया। ऐसे तत्व हर समाज में मौजूद है। वह भारत हो बांग्लादेश हो पाकिस्तान हो या इरान। किसी भी जगह पर इनको देखा जा सकता है। इनके लिए विरोधी विचार को खत्म हो जाना चाहिए। सबसे बड़ी चुनौती समाज के बुद्धीजीवी वर्ग के सामने है कि वे इसका सामना कैसे करते हैं। पत्रकार कम से कम इन लोगों का बहिष्कार तो कर ही सकते हैं।

1 comment:

रघुवंशमणि said...

sahi baat. Abhivayakti ki swatantrata ki raksha har hal mein honi chahiye. Dharm ke naam per yeh sab bilkul galat hai.
Raghuvanshmani