Wednesday, August 22, 2007

कोख के कैसे कैसे सौदे

कोख के कैसे कैसे सौदे
सुबह अखबार देखे तो तीन खबरों ने ध्यान खींचा
१- दैनिक जागरणा में छपी थी लड़का पैदा करने को लड़कियों की तस्करी२-हिन्दुस्तान में फर्रुखाबाद में एक गांव खरीदी महिलाओ से आबाद ३-किराए की कोख के लिए नर्स से डाक्टर ने किया बलात्कार सुबह अखबार देखे तो तीन खबरें देखी जो कि महिला की आज की स्थिति को बताती हैं। दैनिक जागरण की खबर में बताया गया था कि पंजाब और हरियाणा की संपन्नता का दूसरा चेहरा दिखाया गया था। यह चेहरा संयुक्त राष्ट्र विकास की मानव तस्करी पर किए गए एक शोध पर आधारित है। इसे एचआईवी के संदर्भ में किया गया था। भारत के इन संपन्न राज्यों की कीमत यहां की महिलाओं के साथ बंगाल उड़ीसा और असम की गरीब महिलाएं भी चुका रही हैं। इन दोनों राज्यों में पुरुष और महिला का अनुपात खतरनाक स्तर तक गिर चुका है। हालत यह है कि अब यहां विवाह योग्य लड़कों के लिए लड़कियों का अभाव हो गया है। यह सब इसलिए हुआ कि बड़ी संख्या में मादा भ्रूण हत्या की गई। इस इलाकों में अमीर लोगों ने तो अपने पैसे के बल पर शादी के लिए लड़कियां को पा लिया लेकिन गरीब क्या करते। मादा भ्रूण हत्या का रोग तो इस वउन्हें भी लग चुका था। इस बीच कुछ दलालों की नजर देश के गरीब इलाकों की ओर गई। जहां से गरीब लड़कियों को लाया जा सकता था। धीरे-धीरे देश के गरीब इलाकों से पंजाब और हरियाणा में लड़कियों को लाया जाने लगा। क्या विडम्बना है पहले अपनी लड़की की हत्या कर दो फिर बेटे की शादी के लिए लड़की खरीद लो। गोया कि महिलाएं न हुई जानवर हो गई। कभी इस खूंटे से बाधों कभी उस खूंटे से। लड़कियों के मांबाप भी इनको इसलिए बेच देते हैं कि कम से कम संपन्न इलाके में जा कर दो वक्त की रोटी तो खा सकेगी वरना उनके पास तो खाने के भी लाले हैं। इन इलाके मे आते ही महिला का मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न शुरु हो जाता है। इस महिला को सिर्फ इसलिए खरीदा गया होता है कि वह संतान पैदा करेगी और वह भी बेटा। संतान के लिए की गई यह शादी किसी कानूनी बलात्कार से कम नहीं है। एक महिला जिसे उस संस्कृति की कोई समझ न हो वहां की भाषा न जानती हो कैसे सामन्जस्य करेगी कल्पना की जा सकती है। उस पर भी खरीदी हुई है तो हालत किसी जानवर से ज्यादा क्या हो सकते हैं। यदि महिला के कोख में मादा भ्रूण आ जाए तो निश्चित तौर पर गिरा दिया जाएगा। एक बार बेटा पैदा करने के बाद इन महिलाओ की स्थिति और भी खराब हो जाती है। पहला खरीददार उसे दूसरे को बेच देता है क्यों कि वह तो उसे बेटा पाने के लिए लाया था और वह काम पूरा हो गया। बेटे के पैदा होते ही बच्चे को महिला से अलग कर दिया जाता है। मातृत्व का ऐसा अपमान तो इसी देश में हो सकता है। महिला को बेच कर वह अपनी लगाई रकम की कुछ भरपाई तो कर लेगा। महिला दूसरे आदमी के पास जाकर एकबार फिर बेटे को पैदा करने के काम में लग जाती है। बेटा पैदा करने के बाद उसे तीसरी जगह बेच दिया जाता है। यह क्रम चलता ही रहता है जब तक महिला मर न जाए। संपन्नता महिलाओ पर एक नए तरह से अत्याचार करना शुरु कर दिया है। लड़की होने पर उसे कोख मे मरना पड़ेगा और पैदा हो गई तो लड़का पैदा करने के लिए मरना पड़ेगा। यह है पहली तरह की कोख का सौदा। इसके बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़ रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में एक नई प्रजाति बच्चों की आ गई है जिसे चंकी बच्चे कहा जा रहा है। इनकी शक्लें सामान्य पंजाबी या हरियाणावी लोगों से अलग है। मां के दूसरी संस्कृति की होने के कारण वे वहां की संस्कृति को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर पा रहे है। अभी तो कुछ नहीं लेकिन आने वाले कुछ वर्षो बाद इन इलाकों में बड़ी सामाजिक समस्या आ सकती है। दूसरा कोख का सौदा उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद का है यह काफी कुछ पंजाब वाले मामले से मिलता है। जिला मुख्यालय से पचास किमी दूर मीरगंज में सारा गांव ही बाहर से आई महिलाऒं से आबाद है लेकिन इन महिलाओं को यहां के लोग अपनी गरीबी के कारण खरीद कर लाए है न कि पंजाब की तरह महिलाओ की कमी के कारण। कभी बाढ़ के कारण अपने घरों से विस्थापित इन लोगों को जहां बसाया गया वहां इनकी हालत इतनी खराब हो गई कि कोई यहां अपनी लड़की की शादी करने को राजी नहीं हुआ तो इन्होंने भी बंश बढ़ाने के लिए कोख का सौदा कर लिया। यह चाहे मजबूरी हो या कुछ और लेकिन महिलाओं को लेकर हमारे समाज की मनोस्थिति को तो रेखांकित करता ही है।एक और कोख का सौदा हुआ यह समाज के सबसे सभ्य और सुस्कृत तरीके से किया गया। सांइस की प्रगति ने सक्षम न होने पर भी अपने बच्चे की लालसा पूरा करने का तरीका सुझा दिया है। एक नया तरीका है धाय मां जिसे अंग्रेजी में कहा जाता है सेरोग्रेटरी मदर। मामला कुछ यूं है कि गाजियाबाद के एक डाक्टर ने अपने बच्चे की चाह में साथ मे काम करने वाली नर्स से सौदा कर लिया। यह तो कोख का बड़ा सभ्य सौदा था क्यों कि न तो महिला को कोई ऐतराज था और न पुरुष को। खैर पुरुष को तो होता ही क्यों उसे तो अपनी इच्छाएं पूरी करने का साधन उपलब्ध हो गया। पूरा सौदा पचास हजार में तय हुआ। मामला तीन साल तक चला लेकिन फिर अचानक महिला और पुरुष मे मतभेद हो गए। महिला ने पुरुष पर बलात्कार का मामला दर्ज कराया तो पुरुष ने महिला पर अमानत मे खयानत का। दोनों में कौन सही है यह तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन कुछ सवाल तो सामने आ ही गए है। अगर इस तरह से हर आदमी को पैसा देकर कोख किराए में लेने और शारीरिक संबध के आधार पर बच्वा पैदा करने की अनुमति मिल जाए तो वेश्यावृति के लिए किसी नए शब्द की रचना करनी पड़ेगी। इस संबंध से पैदा हुए बच्चे और अवैध संतानों में क्या फर्क होगा। क्या एक पुरुष को यह अधिकार है कि वह पैसा देकर महिला की कोख खरीद ले और शारीरिक संबंध बना ले। मालूम कि भारत में धाय मां को लेकर कोई कानून है या नहीं। यह एक नई घटना है। यह सही है कि इस मामले में महिला की सहमति थी लेकिन सवान तो फिर भी वही है कि कोख को किराए पर देने की। ये तीनों घटनाएं बता रही है कि समाज में कितनी ही प्रगति हुई हो और महिलाओ की स्थिति बेहतर होने के कितने ही दावे किए जाए लेकिन साइंस की प्रगति का उपकरण महिलाओं के शोषण हथियार बन रहा है। जब तक आर्थिक तौर पर समाज में असमानता होगी तब तक पुरुष कोख खरीदते रहेंगे। यह असमानता ‌क्षेत्र के आधार पर होगी तो असम बंगाल और उडीसा से कोख खरीदी जाएगी और व्यक्ति के आधार पर होगी तो धाय मां के आधार पर खरीददारी होगी। देश की जीडीपी की दर देख कर खुश होने वाले समाज के टूटते बिखरते धरातल को भी देखे।

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