Saturday, August 11, 2007

झुकने की सीमा है कामरेड

अमेरिका के साथ परमाणु करार के बाद हमारे बामपंथी कुछ ज्यादा ही लाल दिखाइ दे रहे हैं। वे वास्तव में नाराज है या यह किसी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। हालत तो यह है कि अब बामपंथियो की नाराजगी किसी को चौंकाती नहीं है। जब इन्होंने भाजपा को रोकने के नाम पर यूपीए को समर्थन दिया था तो तभी यह भी निश्चित हो गया था कि इनको किन नीतियों को समर्थन देना होगा। मनमोहन सिंह का अमेरिका से लगाव उनको तब भी मालूम था। भाजपा और कांगेस पर अमेरिका का दबाव का भी इन्हें पता था। उसके बाद भी ये यूपीए के साथ गए तो अपने को ही धोखा दे रहे थे। २००२ के चुनाव के बाद दोनों राजनतिक दलों की नीतियों के विरोध में इन वामपथियों की एक तीसरे ब्लाक की स्थापना इन्होंने करनी चाहिए थी तब ये स्पष्ट तौर पर दूसरा पोल दिखाइ देते और इन नीतियों का विरोध भी हो पाता। जनता के सामने भी एक नीतियों का विकल्प होता। इन वामपंथियों को भी आम आदमी के लिए संघर्ष करना पड़ता। यह एक कठिन काम है लेकिन वामपथियों के सत्ता में भागीदारी से ज्यादा आवश्यक है। इस संघर्ष में समाज का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ होता। समझौते ने इनको पतित कर दिया है। अब इनके कार्यकर्ताओं पर हैदराबाद में गोली चलती है लेकिन ये सिर्फ विरोध के लिए मुंह खोलते है कर कुछ भी नहीं पाते। करें भी तो कैसे खुद भी नंदीगांव में किसानों पर गोलियां चलाते हैं। अब भी मौका है कि कामरेड समझौते खत्म कर संघर्ष का रास्ता चुन लें वरना इतिहास के पास एक बड़ा कूडादान है।

1 comment:

Sanjay Tiwari said...

कामरेडों की वही दुर्दशा होगी जो संघियों की हुई.