Thursday, September 6, 2007

ब्रज में योगमाया कहां है

अभी कृष्ण जन्माष्टमी मनाई गई। स्वाभाविक है पूरे ब्रज में उल्लास था। इसके बाद गोकुल में नंदोत्सव भी हुआ। इस सारे कार्यक्रम में एक बात जबरदस्त तरीके से झकझोरती रही कि जिस बालिका के स्थान पर कृष्ण को गोकुल में रखा गया था उसका कोई भी उत्सव ब्रज के किसी स्थान पर नहीं मनाया गया। उस बालिका को योगमाया कहा गया। इसके बारे में किंबदंती है कि कंस के हाथ से छूट कर वह आकाशवाणी करती हुई चली गई। योगमाया मिर्जापुर में विध्यवासिनी के तौर पर अधिस्थापित हो गई। वहीं उनकी पूजा अर्चना होती है। कहने को गोकुल में योगमाया का एक मंदिर है और उनकी पूजा होती है। योगमाया के उत्सव न होने पर वहां के निवासियों का कहना है कि यशोदा ने कभी उसको देखा ही नहीं क्योंकि उसके जन्म के समय वह गहरी निद्रा में थी और बव्वे के तौर पर उन्होंने कृष्ण को ही देखा। कृष्ण की गतिविधियां होने के कारण उनका ही महत्व है। यदि गंभीरता से देखा जाय तो यह सारी व्यवस्था महिला विरोधी दिखाई देती है। सबसे बड़ा अपराध तो एक बालिका को उसकी मां से अलग करना ही है। यदि यह मान भी लिया जाय कि समाज के व्यापक हित में यह बलिदान आवश्यक था तब भी उस बालिका को इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए। लेकिन हमारे समाज में तो महिलाओं को हमेशा ही कमतर माना गया। उनका त्याग और बलिदान किसी काम का नहीं। उन्हें तो घर परिवार और समाज के हित में ही काम करना चाहिए। योगमाया के साथ अन्याय आज की कितनी ही योगमायाओं के साथ हो रहा है। भ्रूण हत्या से लेकर दहेज के लिए कितनी ही योगमाया मारी जा रही है। कृष्ण को भगवान मानने वाले कभी उस नवजात बालिका के बारे में भी सोचत। बालिका को भगवान न मानते लेकिन एक इंसान की तरह तो उससे व्यवहार करते।

2 comments:

poonam pandey said...

भले ही आज महिलाओं को ग्लैमर की गुड़ियां बना दिया गया हो पर आज भी उसे इंसान नहीं समझा जाता है...उसे समझा जाता है तो बस सेविका(जो कभी पति की तो कभी परिवार के और सदस्यों की सेवा करे), चुड़ैल या फिर बिकाऊ माल या कहें माल बिकवाने का जरिया...

Unknown said...

ji mai poonam ji ki baat se sahmat hoon