उत्तर प्रदेश शासन ने एक आदेश जारी कर छात्रसंघों के चुनावों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके पीछे कारण दिया गया है कि सरकार शिक्षा का वातावरण सुधारना चाहती है और विश्वविद्यालय औरमहाविद्यालयों में गुण्डागर्दी खत्म करना चाहती है। सामान्य तौर से यह दोनों काम सरकार के ही है कि वह बेहतर शिक्षा बच्चों काे दे और आम आदमी के जानमाल की रक्षा करे। सवाल यह है कि केवल छात्र संघों के चुनाव को रोकने से यह सब होम जाएगा। सरकार का यह कदम घनघोर अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र में आस्था रखने वाला एक सामान्य सोच का आदमी भी इसका समर्थन नहीं कर सकता है। सरकार का यह सोच कि छात्रसंघ सिर्फ गुंडागर्दी का अड्डा बन गए है गलत सोच का नतीजा है। छात्रों के भी कुछ हित है उनकी भी समस्याएं हैं। आखिर छात्रसंघ न होने पर विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रों के हक की बात कौन करेगा। समस्या केवल छात्रों की नहीं बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था का है। सारी शिक्षा व्यवस्था ही चरमरा गई है। न तो सही समय पर परीक्षा होती हैं और न परिणाम आते हैं। जितने दिन पढ़ाई होनी चाहिए उतनी कब होती है। इसके लिए भी छात्र कैसे जिम्मेदार हो गए। अगर इनको सही करने के लिए छात्र मांग करें तो इसे गुंडागर्दी कहा जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह पहले शिक्षा का कलैन्डर तो सही कर ले फिर कोई दूसरी बात करे। कुलपति से लेकर बाबू तक की नियुक्ति तक तो सरकार अपने आदमियों की करती है। छात्र संघ के चुनाव में राजनीतिक दल खुलकर भाग लेते हैं। यह गलत भी नहीं है क्योंकि इसके बहाने छात्रों के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर बहस तो होती है। इससे छात्रों में राजनीतिक सक्रियता तो आती है।
सही बात तो यह है कि छात्र संघ का चुनाव लोकतंत्र का पालना है। यहीं से भावी नेता इन्हीं संस्थानों से आएंगे। अगर शिक्षा क्षेत्र से नेता नहीं आने चाहिए तो सरकार बताए कि किस फील्ड से भावी नेताओं को आना चाहिए। यह आदेश शिक्षा विरोधी है। इसका परिणाम यह होगा कि समाज में किसी भी तरह से हीरो बन जाने वाला युवा नेता बन जाएगा। एक छोटे से वर्ग का नेता घटिया तरीके अपना कर ही बनेगा। गुंडागर्दी का असली कारण विचारविहीन राजनीतिक दलों का सत्ता में आना है। इनकी विचारविहीनता ही छात्रसंघों के चुनाव में दिखाई देती है।
अगर यह मान भी लिया जाय कि छात्रसंघों के नेता गुडे है तो इस देश की संसद और विधानसभाओं पर भी रोक लगनी चाहिए। वहां तो सजायाफ्ता बैठै है। कई माननीयों पर हत्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने का आरोप है। चुनाव जीतने के लिए कितना धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल होता है यह किसी से छिपा है क्या। छात्र राजनीति ने ही एनडी तिवारी प्रकाश करात सीताराम येचुरी प्रफुल्ल कुमार महंत लालू प्रसाद यादव अरुण जेटली विजय गोयल को संसद तक पहुचाया है। पूर्वोत्तर के कई सांसद और विधायक छात्र राजनीति की ही देन हैं। ये छात्र नेता ही थे जिन्होंने गुजरात में भ्रष्ट चिमन भाई पटेल सरकार के खिलाफ मोर्चा लिया और बाद में बिहार में भी छात्रों ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया।
सही तो यह है कि सत्ता हमेशा युवाओं से डरती है। इसलिए वह यह प्रयास करती है कि युवाओं को कभी भी एकजुट न होने दो। यही कारण है कि पूरी शिक्षा व्यवस्था को इस तरह से संचालित किया जाए कि छात्र एक स्थान पर आए ही नहीं। दूरस्थ शिक्षा इसका सबसे अच्छा उदहारण है। छात्र संघों के चुनाव पर रोक का विरोध होना ही चाहिए।
Friday, September 7, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment