Friday, September 7, 2007

कृष्ण भक्तों से मैली हुई यमुना

कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा में देश भर से कम से बीस लाख लोग आए यद्यपि मथुरा वाले तो पचास लाख लोगों के आने का दावा कर रहे हैं। आंकड़ा चाहे कुछ भी हो। इतना तो निश्चित है कि कई लाख लोग आए थे अपनी भक्ति और आस्था के कारण समाज के सबसे गरीब लोग यहां आते हैं क्योंकि इन गरीबों को लगता है कि भगवान ही कोई चमत्कार करेंगे और उनकी हालत बदल जाएगी अगर कुछ नहीं भी होगा तो अगला जन्म तो सुधर ही जाएगा। इतने लोगों के लिए प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की हुई थी। दूर दराज से आए लोगों को मथुरा में जमुना के किनारे और मंदिरों के आसपास खुले आसमान के नीचे सोए हुए देखा जा सकता था। थोड़ी सी जगह देखकर बस खड़ी कर दी और चार ईंटों को जोड़कर चूल्हा बना लिया। उस पर ही मोटी रोटियां सेक कर भूख मिटा ली। एक चादर बिछाकर सो गए। यहां तक तो सब ठीक है। यह देखकर उनकी आस्था के प्रति श्रद्धा भी होती है। असली समस्या तो तब होती है जब ये सब लोग गंदगी फैला देते है। पूरे शहर में खाने की गंदगी ही दिखाई देती है। असली गंदगी तो दूसरे दिन दिखती है जब हर झाडी और पेड़ के पीछे मानव मल ही दिखाई देता है। सारा यमुना का किनारा गंदगी से भर जाता है। हालत इतनी खराब हो जाती है कि कई हफ्तों तक वातावरण से दुर्गन्ध जाती ही नहीं है। फिर यह सारे की सारी गंदगी यमुना में ही चली जाती है। पहले से ही प्रदूषित यमुना और कितनी गंदी हो जाती है। इसकी किसी को चिंता नहीं है। न किसी को परवाह है। तीन दिन के ब्रज प्रवास के दौरान कृष्ण भक्त कितनी यमुना को गंदा कर घर चले जाते हैं।

No comments: