Wednesday, November 12, 2008

इनका क्या कसूर





पिछले तीन दो दिन में देहरादून के आसपास जंगली जानवर मारे गए
फोटो नंबर एक में मसूरी के पास जंगल में मरी पड़ी यह जंगली बिल्ली है। वन विभाग पहले तो वन विभाग को पता ही नहीं चला कि यह जानवर क्या है। बाद में इसका बिसरा सुरक्षा वन्य जीव संस्थान भिजवा दिया। इस बेचारे की मौत किसी वाहन से टकरा कर हुई है।
फोटो नंबर दो में चलते वाहन से टकरा कर राजाजी पार्क से निकला सांभर मारा गया और सड़क के किनारे पड़ा है।
फोटो तीन में गुलदार का शव लेकर वन कर्मचारी ले जा रहे हैं। इसकी मौत देहरादून से पांच किमी दूर राजपुर के पास हुई है। इसकी मौत का पता तो पोस्टमार्टम के बाद भी नहीं चल पाया। अलबत्ता वन विभाग ने आनन फानन मे इसके शव को जला दिया। वैसे इस इलाके में ग्रामीण अपनी फसलों को जंगली सुअरों से बचाने के लिए रस्सी या तार के फंदे लगाते है। शायद यह गुलदार भी इन्हीं फंदे में फंस गया हो। अब विभाग जांच करवा रहा है।

Tuesday, November 11, 2008

मंत्रियों को बुद्धजीवी दिखने का जुनून

आजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।

मंत्रियों को बुद्धजीवि दिखने का जुनून

आजकल उत्तराखंड के कुछ मंत्रियों में बुद्धजीवी दिखने का जुनून सवार है। सारे प्रशासनिक और राजकीय काम छोड़कर ऎसे दिखावा किया जा रहा है कि उनसे बड़ा विद्वान भाजपा में कोई नहीं है। इन मंत्रियों के बीच अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने की होड़ मची हुई है। एक मंत्री के महकमे में चार विभागों में हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल कई दिनों से जारी है लेकिन मजाल है जो मंत्री इससे थोड़ा भी विचलित हो जाएं। फिलहाल तो ये महाशय अपनी लिखी किताबों के विमोचन करने में लगे है। बेचारे इसके लिए कहा़ नहीं घूम रहे है। भारत के एक कोने से दूसरे कोने में घूम घूम कर लोगों की साहित्यिक रुचि का इंतिहान लेने में लगे है। खुद बता रहे है कि उनकी कविता और कहानियां कितनी सार्थक है और समाज के लिए कितनी उपयोगी है। कई जगहों पर उनके चंपूओं ने सम्मान भी आयोजित कर अपने आका को खुश करने का प्रयास किया। इतना करने पर भी लोग है कि उनको साहित्यकार मानने को तैयार नहीं है। अब क्या करें। लेकिन वो नेता ही क्या जो जनता की माने। खुद को साहित्यकार घोषित करवाने के चक्कर में विभाग की चिंता किसे है। वैसे विभाग चलाने के लिए मंत्री ने आग्याकारी सेवक सेविकाएं रखी है और उनके भरोसे मंत्रालय चल रहा है। वैसे इनके बारे में चरचा है कि इनका कवि और लेखक तभी जागता है जब ये सत्ता में होते है और जब कभी ये सत्ता से बाहर होते है तो मंत्री के अंदर का लेखक व कवि भी सो जाता है।इनकी गंभीरता भी देखने लायक होती है।एक और मंत्री है वे भी अतिशय गंभीर है। इनके अंदर भी कवि बसता है। जब भी मौका मिलता है कवि सम्मेलन के मंच पर बिराजमान हो जाते है और श्रोताओं को कृतार्थ कर देते है। वाह वाह के लिए चंपू मौजूद है। सम्मेलन के बाद ये कहने वाले भी कि भाई साहब क्या कविता पढ़ी सारे सम्मेलन मे आप की छाये हुए थे। इनके कवि बनने में भाजपा के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भी महती भूमिका है जब से उन्होने अपनी कविता की किताब छापी तब से इन्हे भी कवि बनने की प्रेरणा मिल गई और बना डाली कविता। जनता ने चुना हे तो क्या कविता नहीं सुनेगी। इनके काव्य की धारा इतनी गहरी है कि इनके आधीन सारे विभाग पानी मांग रहे है। हो ये रहा है कि मंत्रीयों की किताबें और प्रसंशा भारी होती जा रही है उसके साथ ही विभाग की समस्याएं भी भारी होती जा रही है। जनता का खुदा हाफिज।