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Monday, January 7, 2008
कहीं तो शर्म करे बीसीसीआइ
सिडनी का टेस्ट अंपायरों के कारण हार गए तो बीसीसीआइ सिर्फ चीखता रह गया। पहले दिन से हो रही बेइमानी पर उसको समझ तब आइ जब मैच हार गए। हद तो तब हो गइ जब हरभजन सिंह पर नस्लभेदी टिप्पणी के आरोप मे तीन मैंचों का प्रतिबंध लगा दिया। रंगभेद के खिलाफ भारत का संघर्ष पूरे विश्व को पता है। इस पर अगर बीसीसीआइ इसे स्वीकार कर लेता है तो यह भारत के अब तक के रंगभेद के खिलाफ संघर्ष की हार है। बीसीसीऒइ ने इसका प्रतिरोध जितना कमजोर तरीके से किया है वह चिंतनीय है। यह एक खिलाडी का अपमान नहीं वरन पूरे देश की विचारधारा का अपमान है। रंगभेदी भारतीय खिलाडी नहीं वरन आस्टेलिया ऒर आइसीसी है। वास्तविकता तो यह है कि साइमंडस के तोर पर आस्टेलिया के पास कार्ड हे जिसका उपयोग वह किसी के खिलाफ भी रंगभेदी टिप्पणी करने के लिए लगा देता है। सही बात तो यह है कि आस्ट्रेलिया के खिलाडी उज्जड है। भारत के अपने दौरे में ट्राफी लेते समय उन्होंने शरद पवार को जिस तरह से धक्का दिया वह भी बीसीसीआइ को याद नहीं। उसके बाद भी शरद पवार की बीसीसीआइ गोरी चमडी के आगे नतमस्तक क्यों है। इनके लिए पैसा कमाना इतना महत्वपूर्ण हो गय कि कोइ इनको कितना ही अपमानित करे इन्हें फर्क नहीं पडता। इन्हे अपमानित होने का शौक हो सकता है मेहरबानी कर देश को अपमानित न करें।
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