उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान अमिताभ बच्चन के एक विज्ञापन की खूब चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा था कि यूपी में है दम क्यों कि यहां जुर्म है कम ा अब अदालत ने जो फैसला दिया है उससे जाहिर हो रहा है कि आखिर क्यों यहा जुर्म कम थाा आखिर जहां आपके लिए कानून तोडकर गलतसही काम करवाए जाए वहां की तारीफ तो करनी ही पडेगीा अब यह सोचने का विषय है कि इतने झूठ बालने वाले को महानायक किसने बनायाा जो पैसा लेकर गलत विज्ञापन करता हो, गलत तरीके से खुद को किसान बनाया हो वह किस वर्ग का महानायक हा सकता हैा
1990 में नयी अथ्ररव्यवस्था के आने के बाद यहां के बाजार में एक ऐसा आदमी चाहिए था जो स्थानीय हो और जिसके माध्यम से उनका उत्पाद बाजार में स्थापित हो सकेा इसके लिए उन्हें अमिताभ बच्चन से बेहतर आदमी कोई नहीं दिखाई दियाा बरना जिस आदमी की कंपनी 96 में दिवालिया हो गई होा िफल्ती कैरियर लगभग समाप्ति की ओर वह अचानक सारी िफल्मी दुनिया में छा जाता है और उसके चारों ओर विज्ञापनों का ढेर लग जाता हैा इसी बीच इन महाशय को शताब्दी के महानायक का दर्जा दे दिया जाता हैा आखिर दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों ने अपने कलाकारों को छोडकर भारतीय कलाकार को यह दर्जा दे दियाा सीधा सी बात है कि बाजार को इसकी जरूरत हैा यही महानायक बाजार में पेन से लेकर कार तक सब बेचने आ गएा चाहे चाकलेट में कीडे निकले और पेन दो में चलकर फेंक देना पडेा
इसके बाद तो हद तब हो गई जब महानायक बाजार में जुआ खिलाने के लिए टेलीविजन पर आगएा इस जुए बाजी मे किसी को पफायदा हो या न हो महानायक और उनको बाजार में लाने वालों की तिजोरियां भरती चलीं गईा भारतीय िफल्म उद़योग को जितना नुकसान अमिताभ बच्चन के महानाय होने ने पहुंचाया है उतना किसी ने नहींा इसने सारे स्रोतों केा एक ओर की ओर जाने को विवश कर दियाा
इस महानायक से बाजार को कितना ही फायदा हुआ हो लेकिन समाज को तो उन्होंने मूल्य विहीनता की ओर ही घकेला हैा बरना क्या कारण है कि किसान बनने के लिए महानायक को झूठे प्रमाणपख् की जरूरत पड रही हैा जो आदमी इस तहर का व्यवहार कर रहा हो उसे महानायक माना जाय कि नहीं यह पाठकों पर ही छोडा जाना चाहिएा
Saturday, June 2, 2007
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